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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



मैं इस बातसे अनभिज्ञ नहीं हूँ कि अहिंसाको आप अपना मूल सिद्धान्त नहीं मानते। और इसीलिए आपको इस बातकी दूनी सावधानी रखनी होगी कि आपके आन्दोलनमें विचार अथवा वाणीके द्वारा भी हिंसाका प्रवेश न हो। मैंने २५ सालसे अधिक समयसे राजनीतिक क्षेत्रमें अहिंसासे काम लिया है। इसलिए मुझे यह बात दिनके प्रकाशके सदृश स्पष्ट दिखाई देती है कि हम जिस आन्दोलनमें व्यस्त हैं उससे सम्बन्धित अपने विचार, वाणी और व्यवहारमें खूब सावधान रहें। अत्यन्त नम्रता और दृढ़ सत्यपरायणताके बिना अहिंसा असम्भव है और जब कि ऐसी अहिंसा उन आन्दोलनोंमें भी सफल हुई है जो धार्मिक नहीं कहे जा सकते, तो फिर आप लोगोंके लिए, जो कि शुद्ध धार्मिक आन्दोलनका संचालन कर रहे हैं, उसका पालन सचमुच बायें हाथका खेल होना चाहिए।

कारावासके पहले अहिंसा के सम्बन्धमें मैं जो कुछ कहा करता था उसे दोहराने की मुझे जरूरत मालूम होती है; क्योंकि इन पिछले वर्षोंकी घटनाओंका जो थोड़ा-बहुत अध्ययन में कर पाया हूँ, उससे मालूम होता है कि हम अहिंसात्मक आन्दोलनके संचालनका दावा तो करते हैं पर जिस प्रकार हमने प्रारम्भिक वर्षोंमें अहिंसाका पालन नहीं किया था उसी प्रकार इन वर्षोंमें भी हमने विचार और वाणी द्वारा अहिंसाका पूरा-पूरा पालन नहीं किया है। मुझे खेदके साथ कहना पड़ता है कि मेरे पकड़े जानेके तीन महीने पहले मैंने अपने बारेमें 'यंग इंडिया' में जो कुछ लिखा था वह मुझे आज उन दिनोंसे भी अधिक यथार्थ मालूम होता है।

इस बात में मुझे जरा भी सन्देह नहीं कि यदि हमने इन ५ वर्षोंमें, मेरे अर्थके अनुसार अहिंसाका पालन किया होता तो हम अपनी मंजिलपर पहुँच चुके होते। यही नहीं हमें आज हिन्दू-मुसलमानोंमें झगड़े और मतभेद भी नहीं दिखाई देते। इसलिए जब मैं आपका ध्यान गुरुद्वारा सम्बन्धी आपके इस विशिष्ट संघर्ष में अहिंसाकी आवश्यकताकी ओर खींचता हूँ, तब उससे मेरा यह अभिप्राय समझा जाये कि अहिंसाके अनिवार्य तत्त्वोंके प्रति आपने दूसरी जातियोंकी अपेक्षा अधिक लापरवाही दिखाई है।

आपको थोड़ा सावधान कर देना इसलिए और ज्यादा जरूरी है कि आप लोगोंने कभी हिम्मत नहीं हारी। अपने खास ध्येयको प्राप्त करनेमें आप सतत प्रयत्नशील रहे हैं इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप अपने दिलको टटोलिए। यदि आपको यह मालूम हो कि हम अपने अहिंसाव्रतके प्रति सच्चे नहीं रहे तो आप भी कुछ समयके लिए आन्दोलन बन्द कर दें और उसे फिरसे आरम्भ करनेसे पहले आवश्यक रूपसे शुद्ध हो जायें। मुझे सन्देह नहीं है कि आप सफल- मनोरथ होंगे।

मैं हूँ आपका मित्र और सेवक,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १००५५) की फोटो नकल तथा यंग इंडिया, २८-२-१९२४ से।