पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/२६५

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११८. तार : दासको[१]

[पूना
२५ फरवरी, १९२४ या उसके पश्चात्

आना असम्भव। घाव भरा नहीं। कृपया तार द्वारा स्थिति बतायें।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८३७६) की फोटो-नकलसे।
 

११९. जेलके अनुभव[२]

पूना
२६ फरवरी, १९२४

अपने कारावासके दिनोंमें सरकारी अधिकारियोंके साथ मेरा जो पत्र-व्यवहार हुआ था, उसके महत्त्वपूर्ण भागको अपने जेलके अनुभवोंके रूपमें प्रकाशित करनेकी मेरी इच्छा थी। यदि स्वास्थ्य ठीक रहा और अनुकूल समय मिला तो मेरा इरादा इन अनुभवोंको लिख डालनेका है। परन्तु अभी कुछ समयतक तो यह सम्भव नहीं है। इस बीच मित्रोंने मुझपर जोर दिया कि पत्र-व्यवहार अविलम्ब प्रकाशित कर दिया जाना चाहिए। उनकी दलील मुझे ठीक लगती है और इसलिए 'यंग इंडिया' के पाठकोंके सामने मैं इस सप्ताह उस पत्र व्यवहारका एक अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ। हकीमजीके पत्रमें[३] जो बात मैंने उठाई थी वह बात बादके अनुभवोंके बावजूद आज भी ज्यादातर तो ज्योंकी-त्यों कायम है। परन्तु जेलके अधिकारियोंके साथ न्याय करते हुए मुझे यह कहना होगा कि मेरी शारीरिक सुख-सुविधाके मामलेमें मुझे उत्तरोत्तर अधिक सुविधाएँ मिलती गईं। श्री बैंकरको भी पुनः मेरे पास भेज दिया गया था, जिससे मुझे बहुत खुशी हुई थी। हकीमजीको लिखे गये पहले पत्रमें जिस सीमा रेखाकी बात

  1. यह २५ फरवरी, १९२४ के जीरासे प्राप्त इस तारके उत्तर में भेजा गया था : "स्वास्थ्यकी दशा न देखें तुरन्त आयें। अकाली जत्था।" तार किसने दिया, इसका ठीक-ठीक पता नहीं चलता। किन्तु ये दास शायद अकाली आन्दोलनसे सम्बन्धित कोई सज्जन हों। देखिए "वक्तव्य : समाचार पत्रोंको अकालियोंके नाम खुली चिट्ठीपर", २८-२-१९२४।
  2. गांधीजीने जेल में रहते हुए अप्रैल १९२२ से लेकर यरवदा जेलके अधिकारियोंसे जो पत्र-व्यवहार किथा, यह लेख उसकी प्रस्तावनाके रूपमें लिखा गया था। फरवरी, १९२४ में अपनी रिहाईके बाद उन्होंने इसे यंग इंडिया में प्रकाशित किया।
  3. देखिए "पत्र : हकीम अजमलखाको", १४-४-१९२२।