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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कही गई है वह समाप्त कर दी गई थी और हम दोनों सारे अहाते में आजादी से घूम-फिर सकते थे। भाई बैंकरके छूट जानेके बाद बिना मेरे कहे ही तत्कालीन समयके सुपरिटेंडेंट मेजर जोन्सने श्री मंजर अली सोख्ताको साथी के रूपमें मेरे पास भेजनेकी सरकारसे अनुमति ले ली। यह मुझे बहुत ही अच्छा लगा। क्योंकि श्री मंजर अली सोख्ता बहुत अच्छे साथी होने के अलावा मेरे लिए एक आदर्श उर्दू शिक्षक भी थे। थोड़े ही समय बाद श्री इन्दुलाल याज्ञिक आ गये और हमारे आनन्दमें वृद्धि हो गई। उसके बाद मेजर जोन्सने हम तीनोंको यूरोपीय वार्ड में भेज दिया। वहाँ रहने की जगह बेहतर थी और हमारी कोठरियोंके सामने एक छोटा-सा बगीचा भी था। भाई मंजर अलीके छूटने के बाद मेजर जोन्स के स्थानपर सुपरिटेंडेंट कर्नल मरे आये। उन्होंने श्री अब्दुल गनीको मेरे साथी के तौरपर रखनेकी इजाजत ले ली। श्री गनीने इन्दुलाल याज्ञिकको और मुझे आनन्द तो दिया ही, साथ ही भाई मंजर अली सोख्ताका उर्दू सिखानेका काम भी ले लिया और मेरी उर्दू लिखावट सुधारनेके लिए खूब परिश्रम किया; यहाँ-तक कि यदि मेरी बीमारी बाधक न हुई होती तो मुझे उर्दू अच्छी-खासी आ गई होती। इसलिए जहाँतक मेरी शारीरिक सुख-सुविधाका सम्बन्ध है सरकार और जेलके अधिकारी दोनोंने मुझे आराम देनेके लिए वह सब कुछ किया था, जिसकी कि उनसे आशा की जा सकती थी और मेरी दृढ़ मान्यता है कि समय-समयपर मुझे जो बीमारियाँ हुईं उनके लिए सरकार या जेलके अधिकारी, किसीको भी कोई दोष नहीं दिया जा सकता। मुझे अपनी खुराक पसन्द करनेकी छूट थी और मेजर जोन्स और कर्नल मरे दोनों तथा साथ ही मेजर जोन्ससे पहलेके कर्नल डेलजील भी खुराक सम्बन्धी मेरे तमाम आग्रहोंका पूरा खयाल रखते थे। यूरोपीय जेलर भी मेरा बहुत ध्यान रखते थे और सौजन्यपूर्ण व्यवहार करते थे। मुझे ऐसा एक भी प्रसंग याद नहीं आता जिसमें यह कहा जा सके कि उन्होंने मेरे कार्यों में अनुचित रूपसे दखल दिया हो। जब जेलके साधारण नियमके अनुसार मेरी तलाशी ली जाती और मैं यह तलाशी खुशीसे लेने देता था, तब भी वे सौजन्य बरतते और यहाँ तक कि मुझसे क्षमा-याचना भी करते। मनुष्य के रूपमें मेजर जोन्स और कर्नल मरे दोनोंके प्रति मेरा बड़ा आदर है। उन्होंने मुझे कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि मैं कैदी हूँ।

जेलके अधिकारी वर्गकी मेहरबानी के बारेमें मैंने जो कुछ कहा है यदि उसे छोड़ दें, तो मैं सरकारकी राजनीतिक कैदियों के प्रति हृदयहीन नीतिके बारेमें हकीमजीके पत्रमें प्रकट किये गये अपने मतमें परिवर्तन नहीं कर सकता। मैंने उस पत्र में जो-जो बातें कही हैं वे सब बादमें सही साबित हुई हैं। अपने जेलके अनुभवोंको मेरे लिख डालने तक पाठकको इस कथनके प्रमाणके लिए रुकना पड़ेगा। इस समय तो मेरा उद्देश्य इतना ही है कि इस पत्र-व्यवहारका यह अर्थ कदापि न निकाला जा सके कि मैं अपनी शारीरिक सुख-सुविधाके मामलेमें जेलके अधिकारियों अथवा इसीलिए सरकारको किसी प्रकारसे दोषी ठहराना चाहता हूँ।

जिन कैदी पहरेदारोंके सुपुर्द हमें किया गया था, उनके प्रति गहरी कृतज्ञता प्रकट किये बिना मुझे यह टिप्पणी समाप्त नहीं करनी चाहिए। वे चौकसी करनेकी बजाय मुझे और मेरे साथियोंको भी हर तरह की मदद देते थे। कोठरियाँ साफ करने