पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/२६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अहिंसाके पालन करनेकी जो स्थिति देखी उसपर आधारित थी। लालाजीने मेरा पत्र देखा अवश्य था; बल्कि उन्हींके आग्रहसे मैंने उस पत्रमें से बहुत-से अंश निकाल दिये थे। ये अंश कहीं अधिक सख्त थे और अगर लालाजी जोर न देते तो मैं इन अंशोंको पत्र में बना रहने देता। लालाजीने यह भी सलाह दी थी कि पत्र इस वाक्य पर खत्म कर दिया जाये कि गैरसिख नेताओंकी सलाह लिये बिना वे दूसरा जत्था न भेजें, लेकिन चूँकि मैंने अहिंसाके अभिप्रायोंके सम्बन्धमें सामान्य उल्लेख कर देना बहुत जरूरी समझा, इसलिए मुझे लालाजीकी यह सलाह विनम्र भावसे अस्वीकार करनी पड़ी और मैंने अहिंसासे सम्बन्धित अंशोंको जैसाका-तैसा रहने दिया।

मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ५२१२) की फोटो-नकल तथा हिन्दू' २९-२-१९२४ से।
 

१२१. भेंट : सिन्धी शिष्टमण्डलसे

पूना
२८ फरवरी, १९२४

सिन्धका एक शिष्टमण्डल आज सवेरे महात्मा गांधीसे मिला जिसमें श्री जय-रामदास दौलतराम, काजी अब्दुल रहमान, सेठ ईश्वरदास और श्री आर॰ के॰ सिधवा शामिल थे। शिष्टमण्डलने उनसे स्वास्थ्य-सुधारकी दृष्टिसे कराची चलनेकी प्रार्थना की। महात्माजी बिस्तरपर लेटे हुए थे और उन्होंने शिष्टमण्डलसे प्रसन्न मुद्रामें बातें कीं।
श्री सिधवाने शिष्ट-मण्डलके प्रवक्ता की हैसियतसे कहा : "कराचीके समुद्र-तटपर आपका स्वास्थ्य बहुत जल्दी सुधर जायेगा। वहाँका मौसम बहुत अच्छा है।"
महात्माजीने उत्तर दिया :'

स्वास्थ्य लाभके लिए कराची जा सकना मुझे पसन्द तो आता, क्योंकि मैं जानता हूँ क्लिफ्टन बहुत अच्छी जगह है। किन्तु मैं किसी ऐसे केन्द्रीय स्थानमें रहना चाहता हूँ जहाँ दूर-दूरसे आनेवाले मित्रोंको मुझसे मिलनेमें असुविधा न हो। इसी कारण मैंने समुद्र के समीप, अन्धेरीमें[१] रहनेका निर्णय किया है।

श्री सिधवा : आपके स्वास्थ्यका ध्यान प्रमुख बात है। जो लोग आपसे मिलना चाहते हैं वे तो हजारों मील दूरसे भी आ सकते हैं। इसलिए आप कराची चलें। लोगोंको और बातोंकी बजाय आपके स्वास्थ्यकी चिन्ता अधिक है।

यह सच है कि मित्र मुझसे मिलनेके लिए बहुत दूरसे भी आ सकते हैं; किन्तु मैं उनको कष्ट नहीं देना चाहता। मुझे श्रीलंकासे भी बुलावा मिला है। मैं कभी

  1. बम्बईका उपनगर