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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मैंने टर्कीकी विधान सभा में स्वीकृत खिलाफत प्रस्तावके[१] सम्बन्धमें रायटरका विवरण पढ़ा है। मैं जानता हूँ कि इस फैसलेसे आपको गहरी वेदना और चिन्ता होगी, विशेष रूप से इस समय जब आपका अधिकतर समय पारिवारिक दुःखमें बीत रहा है। किन्तु मैंने हमेशा ही ऐसा माना है कि यद्यपि हर चीजका भविष्य ईश्वरके हाथमें हैं, फिर भी इस्लामका भविष्य भारत के मुसलमानोंके हाथ में है।

सदैव आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, ११-३-१९२४
 

१२८. पत्र : हैदराबादके निजामको[२]

पूना
५ मार्च, १९२४

श्रीमन्,

मुझे आपका पहली तारीखका वह पत्र[३] मिला जो आपके द्वारा बरार प्रान्तके मामले में परमश्रेष्ठ वाइसरायको लिखे गये पत्रके सम्बन्धमें है। मेहरबानी करके आपके पत्रकी नकलके साथ अपने गश्ती पत्रकी[४] एक प्रति भी भेजी है। लेकिन मैं बीमारी के कारण उस जरूरी काम को नहीं कर सका हूँ। अभी मैं सिर्फ उन्हीं मामलोंको देख रहा हूँ जिनमें हमेशा मेरी विशेष दिलचस्पी रही है

  1. इसमें खलीफाकी पदच्युति और खिलाफतके उन्मूलनका समर्थन किया गया था। अंकाराके लिए भारतीय मुसलमानोंके शिष्टमण्डल और खलीफाको पारपत्र नहीं दिये गये थे।
  2. लगता है यह पत्र निजामके पास नहीं पहुँच पाया था; देखिए "पत्र : हैदराबादके निजामको", ५-४-१९२४।
  3. इसमें निजामने अन्य बातोंके अलावा यह भी लिखा था कि मैंने वाइसरायको एक सरकारी पत्र लिखा है जिसमें भारत सरकारसे माँग की है "कि वह बरार प्रान्त मुझे वापस दे दे. . .मैंने बरार प्रान्तके निवासियोंसे वादा किया है कि यदि बरार हैदराबाद राज्यके अभिन्न अंगके रूपमें मेरो सरकारकी अधीनतामें आ जायेगा तो मैं उनको स्वायत्त शासन दे दूँगा। मैं यह पत्र आपसे यह पूछनेके लिए लिख रहा हूँ कि सामान्य तौरपर मानव जातिकी आकांक्षाओं के प्रति सहानुभूतिके व्यापक सिद्धान्तके आधारपर और उसकी दशा सुधारनेकी इच्छासे क्या आप मुझे मेरी मौजूदा कोशिशमें जो मदद दे सकते हैं, देंगे।" (एस॰ एन॰ ८४२४)
  4. इसमें सर अली इमामने, जो निजामकी ओरसे उनके वकीलके रूपमें इंग्लैंड गये थे, लिखा था: "यदि हमारे देशके एक छोटे प्रान्तको भी सच्चा और ठीक स्वायत्त शासन प्राप्त हो जाता है तो पूरे भारतमें सभी राजनैतिक दल जिस लक्ष्यसे प्रेरित होकर काम कर रहे हैं, उसकी प्राप्तिका आरम्भ हो जायेगा। इस प्रश्नका एक दूसरा पहलू भी है; इससे पहले किये गये एक बड़े अन्यायका निराकरण भी सम्भव होगा।" (एस॰ एन॰ ८४२७)