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जेल-दशापर टिप्पणी

और जिनमें मेरे देशके लोग मुझसे मार्गदर्शनकी अपेक्षा करते हैं। इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि आप फिलहाल बरार के सवालपर ध्यान न दे सकनेके लिए मुझे क्षमा करें।

आपका विश्वस्त मित्र,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ८४२८) की फोटो-नकलसे।
 

१२९. पत्र-व्यवहारपर टिप्पणी[१]

इस पत्र-व्यवहारके परिणामस्वरूप सरकारने आखिरकार उल्लिखित भेंटों के निषेधका कारण बता दिया। वह कहती है कि इन भेंटोंका निषेध जनहितकी दृष्टिसे किया गया था। परन्तु यदि मैं भविष्यमें विशेष व्यक्ति या व्यक्तियोंसे मिलना चाहूँगा तो सुपरिंटेंडेंटका कर्त्तव्य होगा कि वह सम्बन्धित नाम सरकारके पास भेज दे। मैं यह भी कह दूँ कि मुझसे मिलने के इच्छुक उन सभी लोगोंके नाम मेरे छूटनकी घड़ी तक मुझे सरकार के पास भेजने पड़ते थे। सरकारी वक्तव्य के बावजूद मेरे मामलेमें और उन लोगोंके मामलोंमें, जो मेरे साथ उसी अहाते में थे, सुपरिटेंडेंटको भेंट को अनुमति देनेका कोई अधिकार नहीं था; जब कि उसे अन्य सभी कैदियोंके मामलोंमें यह अधिकार प्राप्त था।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ६-३-१९२४
 

१३०. जेल-दशापर टिप्पणी[२]

कुछ कारणोंसे, जिनकी चर्चा मैं इस समय नहीं करना चाहता, मैं इस विषयमें अधिक पत्र-व्यवहार प्रकाशित करनेमें असमर्थ हूँ। किन्तु मैं यह कहना जरूर चाहता हूँ कि मुझे दो प्रमुख भूख-हड़तालियोंसे जेल सुपरिटेंडेंट और जेलोंके इंस्पेक्टर जनरलकी मौजूदगी में मिलने की इजाजत दे दी गई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि श्री दास्ताने और श्री देव दोनों कैदियोंने मेरे द्वारा पेश किया गया नैतिक तर्क पसन्द किया और अपना लम्बा उपवास तत्काल समाप्त कर दिया। सरकारने कोड़े मारनेके कारणों और सम्बन्धित परिस्थितियोंकी जाँच करनेके बाद निर्देश दे दिया कि जेल अधिकारियोंपर कैदियोंके हमला करने या इसी तरह के अन्य आचरणको छोड़-

  1. यह "पत्र : यरवदा जेलके सुपरिंटेंडेंटको" शीर्षकसे १६-४-१९२३ को प्रकाशित हुआ था। गांधीजी द्वारा जेल अधिकारियोंको भेजे गये अन्य पत्र तिथि क्रमसे दिये गये हैं।
  2. यह "पत्र : परवदा जेलके सुपरिंटेंडेंटको," २९-६-१९२३ शीर्षकसे प्रकाशित किया गया था।