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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर पहलेसे सरकारकी इजाजत लिये बिना जेल सुपरिटेंडेंट कोड़े नहीं लगवायेगा। मैंने देखा है कि तत्कालीन सुपरिंटेंडेंट मेजर ह्विट्वर्थ जोन्सके आचरणके सम्बन्धमें अतिरंजित खबरें प्रकाशित की गई थीं और उन्हें एक निर्दयी सुपरिंटेंडेंट तथा उनके आचरणको अमानवीय आचरण बताया गया था। मेरी रायमें कोड़े लगानेकी उक्त सजा देना केवल इस बातका सूचक है कि सुपरिटेंडेंटने स्थितिको न समझकर गलत निर्णय किया; और कुछ नहीं। मेजर जोन्स बहुत बार जल्दबाजी कर जाते थे; परन्तु जहाँतक मुझे मालूम है उन्होंने हृदयहीनताका परिचय कभी नहीं दिया, बल्कि मैंने जितना भी उन्हें देखा और जिन कैदियोंके सम्पर्क में मैं आया उनसे यही मालूम हुआ कि वे एक बहुत ही सहानुभूतिपूर्ण सुपरिटेंडेंट थे; वे हमेशा कैदियोंकी बात सुनने को तैयार रहते थे और जो भी अधीनस्थ कर्मचारी किसी भी तरहसे उनके साथ बुरा बरताव करते, उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाईके लिए तैयार रहते थे। वे अपनी गलती सदा मान लेते थे। यह गुण एक अधिकारीमें दुर्लभ गुण है। साथ ही वे अनुशासन-प्रिय थे और एक जल्दबाज अनुशासनप्रिय व्यक्तिसे बहुधा गलती हो सकती है। सत्याग्रहियों को कोड़े लगाने की दोनों घटनाएँ ऐसी ही गलतियाँ थीं। वहाँ विवेकदोष था, हृदयदोष नहीं। सच तो यह है कि अन्धाधुन्ध कोड़े लगानेका अधिकार जेल सुपरटेंडेंटको दिया ही नहीं जाना चाहिए। वह अधिकार विलम्बसे वापस लिया गया। जेल प्रशासन और कोड़े लगानेकी इन घटनाओंकी विस्तृत चर्चा हम किसी अगले अंकमें करेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ६-३-१९२४
 

१३१. जेलके विनियमोंपर टिप्पणी[१]

गवर्नर महोदय ने अपने जेल-निरीक्षण के दौरान मुझसे आग्रहपूर्वक जानना चाहा था कि मुझे विशेष वर्गके विषयमें कुछ कहना तो नहीं है; यह पत्र उसी सिलसिले में लिखा गया था। मैंने उनसे जो कहा उसका आशय यह था कि मेरी रायमें विशेष वर्ग विनियम दिखावा मात्र है और सिर्फ जनताके दिलपर यह छाप डालनेके लिए बनाया गया था कि राजनैतिक बन्दियोंको उनके सामान्य जीवन-स्तरके अनुकूल आवश्यक सुविधाएँ देनेका कुछ प्रबन्ध किया गया है। किन्तु गवर्नरने मुझसे अत्यन्त निश्चयपूर्वक कहा कि कानूनन उन्हें ऐसा कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं है जिससे वे सख्त सजा पाये हुए कैदियोंको इस विशेष वर्गके अन्तर्गत ला सकें। और जब मैंने यह जानना चाहा कि उनको इस कानूनकी पूरी जानकारी है या नहीं तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसका ठीक ज्ञान होना ही चाहिए, क्योंकि वे विनियम स्वयं उन्होंने

  1. यंग इंडियामें अपना १५-८-१९२३ का "पत्रः बम्बईके गवर्नरको" प्रकाशित करते हुए गांधीजीने यह टिप्पणी दी थी।