ही बनाये थे। मुझे इस गवर्नरकी उद्यमशीलतापर आश्चर्य हुआ जो विनियम बनानेके समान छोटे-छोटे कामोंपर भी ध्यान देता है। सामान्यतः ऐसे काम कानूनी अधिकारियोंपर छोड़ दिये जाते हैं। यद्यपि प्रयोगमें न आनेसे मेरा कानून-सम्बन्धी ज्ञान कुण्ठित हो गया है, फिर भी गवर्नरने जिस अधिकारपूर्ण ढंगसे बात की उसके बावजूद मैं इस बात से सहमत नहीं हो सका कि कानूनमें सरकारको केवल सादी सजा पाये हुए कैदियों के वर्गीकरणका अधिकार दिया गया है, सख्त सजा पाये हुए कैदियोंके वर्गीकरणका नहीं; और सरकारको सजाएँ घटानेका भी कोई विशेषाधिकार नहीं दिया गया है। इसीलिए उक्त पत्र लिखा गया था। इसका जवाब यह मिला कि कानूनके बारेमें गवर्नर महोदयका खयाल गलत था और सरकारको इसके लिए जरूरी अधिकार प्राप्त हैं। परन्तु यह बात मालूम हो जानेपर भी उन्होंने विनियमोंमें इस तरहका कोई फेरफार करनेमें अपनी असमर्थता दिखाई जिसके अनुसार वह सभी राजनैतिक कैदियोंपर, चाहे वे सादा कैदकी सजा पाये हुए हों या सख्त कैदकी, लागू किया जा सके। इसलिए मुझे यह कहते हुए खेद होता है कि मेरा यह सन्देह कि विशेष-वर्ग विनियम केवल दिखावा मात्र है, पक्का हो गया।
- [अंग्रेजीसे]
- यंग इंडिया, ६-३-१९२४
१३२. यरवदा जेलके सुपरिंटेंडेंटको लिखे पत्रपर टिप्पणी[१]
पाठकोंको सावधान रहना है कि वे इस पत्रका ऐसा कोई अर्थ न निकाल लें जो लेखकके मनमें था ही नहीं। पत्रमें उल्लिखित घटनाकी काफी चर्चा रही है और उसे लेकर काफी अटकल बाजियाँ हुई हैं। पत्र प्रकाशित करनेका मंशा उसे स्पष्ट करना ही है। कहा गया है कि मेरी हालत फलोंका त्याग कर देनेके कारण ही ज्यादा बिगड़ गई थी, इसलिए यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि मैंने फलोंका त्याग श्री अब्दुल गनीकी प्रार्थनाको सुपरिंटेंडेंट द्वारा अस्वीकार किये जानेके विरोधमें कदापि नहीं किया था। इसके अलावा विशेष वर्ग विनियमोंके अनुसार श्री अब्दुल गनीको यह अधिकार प्राप्त था कि वे फल या खानेकी दूसरी चीजें मँगाना चाहें तो मँगा सकते हैं। परन्तु श्री गनी, याज्ञिक और मैं इस निष्कर्षपर पहुँचे थे कि बाहरसे खानेकी चीजें मँगाना हमारे लिए ठीक नहीं होगा। इसलिए मेरे फलोंके त्यागका जो परिणाम हुआ उसके लिए अधिकारियों को किसी तरह दोषी नहीं ठहराया जा सकता। सुपरिटेंडेंट और जेलोंके इन्स्पेक्टर जनरलने भी मुझसे आग्रह किया था कि मैं अपने फैसलेपर अमल न करूँ। उन्होंने मुझे सावधान किया था कि फल न लेनेसे स्वास्थ्य काफी बिगड़ सकता है, लेकिन अपने मनकी शान्तिके विचारसे मैंने यह जोखिम उठाना स्वीकार किया। और उस सारी गम्भीर बीमारीके बाद भी, जो मुझे भोगनी पड़ी है, मुझे
- ↑ यह टिप्पणी "पत्र : परवदा जेलके सुपरिटेंडेंटको", १२-११-१९२३ के साथ प्रकाशित की गई थी।