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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपने इस निर्णयके लिए खेद नहीं है। अपने भोजनमें परिवर्तनकी माँग करनेके लिए पाठक किसी भी रूपमें श्री अब्दुल गनीको भी दोष न दें। उन्होंने मुझसे अच्छी तरह सलाह-मशविरा करनेके बाद यह माँग की थी और मैं यह नहीं जानता था कि विनियमोंके अनुसार सुपरिंटेंडेंटको परिवर्तित भोजन देनेकी छूट नहीं है, इसलिए मैंने भोजनमें परिवर्तन करनेके विचारका अनुमोदन किया था। ऐसा सोचनेकी भूल मुझसे हुई क्योंकि जैसा पत्रमें कहा गया है, श्री याज्ञिक तथा अन्य साथी कैदियोंको पूर्ववर्ती सुपरिंटेंडेंटने समय-समयपर अपने भोजनमें परिवर्तनकी अनुमति दे दी थी। जब श्री अब्दुल गनीकी माँग ना मंजूर किये जानेपर मैंने फल छोड़नेका फैसला किया तो उन्होंने मुझे रोकनेकी पूरी कोशिश की; परन्तु मेरा इस प्रयोगको तबतक छोड़ना सम्भव नहीं था जबतक मुझे यह बात बिलकुल स्पष्ट मालूम न हो जाती कि मेरे स्वास्थ्यके लिए फल जरूरी हैं या नहीं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ६-३-१९२४
 

१३३. सन्देश : दिल्ली प्रान्तीय राजनैतिक सम्मेलनको[१]

[पूना
७ मार्च, १९२४ या उसके पूर्व]

आपके इस सम्मेलनके सामने इस समय सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करनेका है। यदि यह सुननेको मिले कि सम्मेलनके हिन्दू और मुसलमान सदस्योंने ईश्वरको साक्षी मानकर निश्चय किया है कि वे कभी एक दूसरेपर अविश्वास नहीं करेंगे वरन् एक दूसरे के लिए प्राण देने को तैयार रहेंगे, तो इस समाचारसे मेरे व्यथित हृदयको सान्त्वना मिलेगी। ईश्वर आप सबका उचित मार्गदर्शन करे।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १०३६६) की माइक्रोफिल्मसे।
  1. चौथा दिल्ली प्रान्तीय राजनैतिक सम्मेलन ७ और ८ मार्च, १९२४ को श्री आसफ अलीको अध्यक्षता में मेरठमें हुआ था।