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१३४. पत्र : महादेव देसाईको

[८ मार्च, १९२४के पूर्व ][१]

भाईश्री महादेव,

कृष्णदास के नाम लिखे गये तुम्हारे पत्रको पढ़कर मुझसे पत्र लिखे बिना नहीं रहा गया; तुम्हारी शिकायत शब्दश: सच्ची है। तुमने जो प्रश्न उठाये हैं वे मेरे मनमें भी उठे थे, किन्तु शरीर अशक्त था इसलिए मैं कुछ अधिक नहीं कर सका। अन्तिम समय तैयारी करनेसे मैं स्वभावतः कोई निर्देश भी नहीं दे सका। मुझे लाल और हरी रेखाओंके सम्बन्धमें तुम्हें निर्देश देनेकी आवश्यकता थी। यही बात संख्याओंके सम्बन्ध में भी है। संख्याएँ दो बार बदली गईं, इसलिए तुमने ८,६२२ और ८२७ दो संख्याएँ देखी होंगी। संख्या ८,६२२ है अथवा कोई दूसरी है यह मैं भूल गया हूँ।

देवदास मेहनती है, किन्तु पत्र लिखने में सुस्त है। मैं ऐसा मानता हूँ कि जिसकी लिखावट अच्छी नहीं होता वह पत्र लिखने में सुस्ती करता ही है। प्यारेलाल अपने विचारोंमें खोया रहता है और उसमें उत्साहका अभाव है। कृष्णदास अभी नया जैसा है और घबराहटमें उससे जल्दी करनेका कोई काम नहीं कराया जा सकता। इस स्थिति में तुम्हें वहाँकी हालत के सम्बन्ध में जो असन्तोष हो उसे सहना ही होगा।

मैं मोतीलालजीसे हुई अपनी बातचीतका सार तो तुम्हें बता ही दूँ। वे अपने कौंसिल प्रवेश सम्बन्धी विचारपर दृढ़ रहे, किन्तु मुझे अपने इस विचारके पक्ष में नहीं कर सके। मैं भी उन्हें अपने विचारसे सहमत नहीं कर सका। वे, हकीमजी और अन्य लोग इस महीने के अन्तिम सप्ताह में मुझसे मिलनेके लिए यहाँ फिर आयेंगे।[२] इस समय यहाँ सिख नेता सलाह करनेके लिए आये हुए हैं। मेरी उनसे बातचीत हो रही है। जब यह बातचीत समाप्त हो जायेगी तब मैं तुम्हें उसके परिणामकी सूचना दूँगा। एण्ड्रयूज तो यही हैं। जयरामदास, राजगोपालाचारी और शंकरलाल भी यही हैं। जयरामदासको आये हुए तो दस दिन हो रहे हैं। मैं शायद शनिवारको जुहू जाऊँगा, किन्तु यह अभी पक्का नहीं है। यह घावकी स्थितिपर निर्भर है। मेरे पत्रों का कोई अंश अखवारमें मत छापना। जहाँतक मेरा खयाल है मैं तुम्हें सप्ताह में एक बार तो पत्र लिखूँगा ही।

अब यंग इंडिया में छापने के लिए जेल अनुभव सम्बन्धी पत्र तो नहीं रहे। कह नहीं सकता कि अपने [जेलके] अनुभव अब कब लिख सकूंगा।

  1. यह पत्र १० मार्च, १९२४ को महादेव देसाईको प्राप्त हुआ था। गांधीजी ११ मार्चको बम्बई पहुँचे थे; इसके पहले शनिवार ८ मार्चको पड़ा था; अतः यह पत्र ८ मार्चके पूर्व लिखा गया होगा।
  2. ये लोग गांधीजीसे दुबारा २९ मार्चको मिले थे। मोतीलाल नेहरू और अन्य स्वराज्यवादी नेताओंसे गांधीजीको बातचीत कई दिनतक चली थी।

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