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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मणि कैसी है? उससे कहें कि यदि वह बीमार ही रहेगी तो मुझे उसे पत्र लिखनेका कष्ट उठाना ही पड़ेगा। यदि वह मुझे इस कष्टसे बचाना चाहती है तो उसे तुरन्त स्वस्थ हो जाना चाहिए।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ८४४३) की फोटो-नकलसे।
 

१३५. पत्र : मगनलाल गांधीको

शनिवार [८ मार्च, १९२४][१]

चि॰ मगनलाल,

तुम्हारे पत्रका एक अंश मुझे चिन्तित करता है। तुमने लिखा है कि चोरोंके उपद्रवोंके कारण तुम्हें रातको अर्ध-जाग्रत रहना पड़ता है। यह स्थिति कबतक चल सकती है? यदि कोई अच्छा चौकीदार न मिले तो हमें आपसमें ही बारी बाँधकर पहरा देना चाहिए। किन्तु इससे भी जरूरी बात तो यह है कि हम गहने सर्वथा त्याग दें। आश्रममें अथवा शालामें किसीके पास एक रत्ती भी सोना अथवा थोड़ी-सी भी चाँदी नहीं रहनी चाहिए। हनुमन्त रावका[२] पत्र दो-तीन दिन पहले आया था; उसे पढ़कर मैं चकित रह गया। उनकी पत्नी के ऊपर जो बीती वह तुम्हें मालूम है क्या? इसके साथ मैं पत्र भेजता हूँ, उसे पढ़ लेना। यदि ऐसी ही घटना आश्रम में भी हो तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं। कानोंके गह्नोंकी तो कोई जरूरत ही नहीं है। हाथमें पहनने के लिए बहुत सुन्दर शंखके चूड़े मिलते हैं। अन्य प्रकारका परिग्रह भी जहाँतक हो सके कम कर देना चाहिए और निर्भय होकर रहना चाहिए। यदि चोर इनकी भी चोरी करें, तो इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए। आसपास के गाँवोंके लोगोंसे भी इस सम्बन्धमें कहना चाहिए। ऐसा तो तुमने किया ही है। उनको फिर कहनेकी जरूरत जान पड़े तो कहना। पहरा देना, परिग्रह कम करना और गाँवोंकी मार्फत चोरोंसे चोरी न करनेको कहना—ये तीनों उपाय एक साथ काममें लाये जाने चाहिए।

जुहूमें राधाकी[३] तबीयतका समाचार देना। मेरा विचार यह है कि यदि जुहूकी जलवायु अनुकूल लगे और राधा यात्राका कष्ट सह सके तो उसे वहाँ बुला लूँ। रामदासका मन बहुत अव्यवस्थित है। वह बहुत दुःखी है। उसे अपना आश्रय देना। दुःखकी चर्चा किये बिना उससे सहानुभूति दिखाना। सुरेन्द्रको अथवा जिस किसीको अवकाश हो उसे उसके साथ रहने के लिए कहना। यदि वह कार्यवश वहाँ न आये तो

  1. गांधीजी जुहू मंगलवार ११ माचको पहुँचे थे। उससे पहले शनिवार ८ मार्चको था।
  2. मैसूरके कांग्रेसी नेता।
  3. मगनकालकी पुत्री।