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अकालियोंको सलाह

प्राप्त होता तबतक समितिका अधिकार जताने के लिए भक्तोंकी कतार इकहरी या दोहरी, गुरुद्वारा जाती ही रहे। मेरा इस बातकी ओर इंतिग करना आवश्यक नहीं है कि यदि मौजूदा अधिकारी पंचसे निर्णय करवाना स्वीकार कर ले तो समितिको चाहिए कि वह उक्त प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए हमेशा तैयार रहे। उस सूरतमें सत्याग्रह द्वारा स्वत्व जाहिर करने की बात ही नहीं बचती। यह तो कहने की जरूरत ही नहीं कि ऐसी हालत में यदि कुछ भक्त लोग समितिके उद्देश्य की पूर्तिका प्रयत्न करते हुए जेल भेज दिये गये हों, तो वे पंच निर्णय के प्रस्तावकी स्वीकृति के साथ-ही-साथ रिहा कर दिये जायें।

नाभा

नाभा राज्य के सम्बन्ध में स्थिति जैसी मुझे मालूम हुई है और जैसी शि॰ गु॰ प्र॰ समिति द्वारा भेजे गये अकाली मित्रोंने बताई है, वह इस प्रकार है :

१. शि॰ गु॰ प्र॰ समितिका विचार है कि महाराजको गद्दी त्यागने के लिए मजबूर किया गया है। ऐसा करनेका कोई औचित्य नहीं है और समिति यह सिद्ध कर सकती है कि वाइसरायने अस्पष्ट रूपसे जिन आरोपोंका उल्लेख किया है, उनके कारण या किन्हीं अन्य ऐसे आरोपोंके कारण जिनसे ऐसे अत्युग्र दण्डका औचित्य सिद्ध होता है, महाराज पदत्यागके लिए मजबूर नहीं किये गये हैं, वरन् कई मौकोंपर दिखाई गई अपनी लोक-सेवाकी भावना और अकालियोंके हितके प्रति अपनी सक्रिय सहानुभूतिके कारण वे गद्दीका त्याग करनेके लिए मजबूर किये गये हैं। समिति एक ऐसे योग्य अधिकारी द्वारा मामलेकी पूरी और निष्पक्ष जाँचकी माँग करती है, जिसके सामने शि॰ गु॰ प्र॰ समितिको सबूत देनेका अधिकार हो और जिसके निष्कर्षोंसे समितिका समाधान हो जायेगा। कहा गया है कि सरकारने कुछ ऐसे आरोपोंको जो उसकी राय में बहुत ही अपयशजनक थे, दबा दिया और इसका लिहाज करते हुए महाराजने स्वेच्छापूर्वक पदत्याग कर दिया था। यदि इस कथन के प्रमाणस्वरूप महाराजके खुदके लिखे कागज प्रस्तुत किये जा सकते हों तो समितिके पास स्वभावतः आगे कुछ कहनेको न होगा। और यह कथन सरकार के किसी प्रच्छन्न दबाव के बिना, महाराजका हालमें लिखा होना चाहिए। समिति फिलहाल कोई सीधी कार्रवाई नहीं कर सकती। साथ ही यह कहना मुनासिब ही है कि यदि पूरा न्याय प्राप्त करनेके उद्देश्यसे निष्पक्ष जाँच करानेके सभी प्रयत्न असफल हो जायें, और इसके बाद जब समिति अपनी जानकारी के अनुसार जितने भी तथ्य हैं वे जनताके सामने पेश कर चुके और जनता उनपर विचार कर ले तथा जनमत पूरी तरह तैयार हो जाये तो समिति इसे अपने सम्मान और प्रतिष्ठाका सवाल मानकर, अनिच्छापूर्वक, पर सीधी कार्रवाई करने के लिए मजबूर हो जायेगी। फिर भी समिति नाभाके सम्बन्धमें अपनी स्थिति स्पष्ट करनेके लिए जो भी ज्ञापन निकालेगी उसमें सीधी कार्रवाईका कोई उल्लेख नहीं किया जायेगा।

उपर्युक्त स्थिति में मुझे कुछ भी आपत्तिजनक प्रतीत नहीं होता और मैं इसका हार्दिक अनुमोदन करता हूँ।