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१३९. तार : कोण्डा वेंकटप्पैयाको

[१० मार्च, १९२४ के पूर्व][१]

हरिजनों के लिए एक मन्दिर खुलवानेके उद्देश्यसे नेलौरमें श्रीरामुलुका[२] मेरी सलाहसे अनशन स्वास्थ्य ठीक हो तो स्वयं जायें या किसीको भेजें। जो उचित हो करें। मुझे परस्पर विरोधी तार[३] मिले हैं। पूनाके पतेपर तार दें।

अंग्रेजी प्रति (११७ ए) की फोटो-नकलसे।
 

१४०. सन्देश : खादी-प्रदर्शनीको[४]

१० मार्च, १९२४

शुद्ध खादीकी प्रदर्शनियाँ खादीके प्रचारमें बहुत उपयोगी सिद्ध होती हैं, इस सम्बन्धमें अब शंकाका अवकाश नहीं रहा। किन्तु हमें अब भी खादीकी प्रदर्शनियाँ करनी पड़ती हैं यह कैसी विचित्र बात है। यदि कोई हमें देशमें उत्पन्न गेहूँ और बाजरेका प्रचार करनेके लिए उनकी प्रदर्शनी करनेकी बात कहे तो हम उसे मूर्ख मानेंगे। क्या खादीकी उपयोगिता गेहूँ और बाजरेकी अपेक्षा कुछ कम है? यदि हम गेहूँ और बाजरेकी बजाय स्कॉटलैंडकी जई मँगवाकर नहीं खाते तो मैंचेस्टर अथवा जापानसे कपड़ा मँगाकर और पहनकर खादीका अनादर क्यों करते हैं? यह बात प्रत्येक देशभक्त और धर्मभक्तके लिए विचारणीय है। और जबतक हम विदेशी कपड़ेपर निर्भर रहेंगे तबतक हम अवश्य ही विदेशी राज्यके अधीन रहेंगे। मुझे आश्चर्य है कि हम ऐसा सीधा हिसाब छोड़कर पेचीदा हिसाब क्यों करते हैं? जबतक हम हाथकते सुतकी और हाथबुनी खादीको पहननेके सहज और सीधे राजमार्गपर चलना

  1. स्पष्ट है कि तार पूनासे १० मार्चके पहले भेजा गया था। गांधीजी उस दिन बम्बई रवाना हुए थे।
  2. पोट्टी श्री रामुलु नायडू, साबरमती आश्रमके सदस्य। उन्होंने मूलापेटमें वेणुगोपाल स्वामीके मन्दिरमें हरिजनोंका प्रवेश करानेके लिए ७ मार्चको अपना अनशन शुरू किया था। उन्होंने सन् १९५२ में आन्ध्र-राज्यकी स्थापनाके लिए आमरण अनशन किया।
  3. इससे पहले एक अखबारी खबर में श्रीरामुलुकी हालत कमजोर बताई गई थी और कहा गया था कि मन्दिरके प्रबन्धक न्यासीने उन्हें अपने साथी न्यासियोंसे मन्दिरको हरिजनोंके लिए खोलनेका अनुरोध करने का आश्वासन देकर अनशन तोड़नेका अनुरोध किया है।
  4. यह सन्देश मांडवी, बम्बई में हुई खादी-प्रदर्शनीके उद्घाटनके बाद कस्तूरबा गांधीने पढ़कर सुनाया था।