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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं सीखेंगे तबतक हमें खादीकी प्रदर्शनियोंकी व्यवस्था तो करनी ही पड़ेगी। इसलिए मैं मांडवीकी प्रदर्शनीकी पूरी सफलता चाहता हूँ।

[गुजरातीसे]
गुजराती, १६-३-१९२४
 

१४१. भाषण : पूनाके विदाई समारोह में[१]

१० मार्च, १९२४

मेरे इस भाषणसे कर्नल मैडॉक के निर्देशकी सादर अवज्ञा होती है। किन्तु यदि मैं यहाँ भाषण न दूँ तो यह आपके प्रति अन्याय होगा। सरकारने कर्नल मैडॉकको यरवदा जेलमें मेरी बीमारीकी जाँच करने के लिए भेजा था; तभी से वे मेरे मित्र बन गये हैं। मैं अपना आपरेशन करानेके लिए तैयार नहीं था; किन्तु कर्नल मैडॉकने मेरे ऊपर ऐसा प्रभाव डाला कि मैं उनपर पूरा विश्वास करनेके लिए बाध्य हो गया। मुझे उनकी कुशलतामें पूरी आस्था है। मैं इतना निष्णात नहीं हूँ कि उन्हें कोई प्रमाणपत्र दूँ, किन्तु सच्ची बात यही है। मुझे उनसे यह आशा है कि वे जहाँ भी जायेंगे वहाँ अपने अवकाशका समय मानव-जातिकी सेवामें व्यतीत करेंगे।

अहिंसात्मक असहयोगका अर्थ है सभी मानवोंके प्रति सद्भाव और सहानुभूति। यदि मैं किसी मनुष्यको अपने सम्बन्धमें यह कहते सुनूँ कि किसी व्यक्ति विशेषके प्रति मेरा दुर्भाव है तो मुझे उसकी बात सुनकर दुःख होगा और मैं मर जाऊँगा तब भी अपने मनमें उसका दुःख लेकर जाऊँगा। जिन लोगोंने मेरी सहायता की है मैं उन सबका आभार मानता हूँ। आप सबने मुझे स्वदेशी वस्त्र पहननेका विश्वास दिलाया है, इससे मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। स्वदेशीका अर्थ किसीके प्रति दुर्भाव रखना कदापि नहीं होता। कर्नल मैडॉक और उनकी पत्नी जहाँ कहीं भी रहें, प्रसन्न रहें और वे दीर्घायु हों, ऐसी मेरी प्रभुसे प्रार्थना है।

[गुजरातीसे]
गुजराती, १६-३-१९२४
  1. बी॰ जे॰ मेडीकल स्कूलके छात्र, कर्नल मैडॉक और अस्पतालके अन्य कर्मचारी गांधीजी को विदाई देनेके लिए इकट्ठे हुए थे। गांधीजीने उन्हींके सम्मुख यह भाषण दिया था।