मैं अपने देशको भुखमरीसे बचाने के लिए तबतक क्यों ठहरूँ जबतक कि यूरोपीय अर्थमें उन्हें शिक्षा देनेकी व्यवस्था नहीं हो जाती। क्या आप जानते हैं कि हमारी पैंतीस करोड़की आबादीका कमसे कम एक तिहाई आधा पेट खाकर अपने दिन गुजारता है। उन्हें शिक्षासे पहले रोटी चाहिए। इसके सिवा यह सवाल भी तो है कि पश्चिमी शिक्षासे भारतीयोंका सचमुच कोई लाभ होगा या नहीं। भूतकालमें हम इस शिक्षाके बिना भी सुखी और समृद्ध थे। किन्तु आज हम अंग्रेजी सभ्यताके इन सारे वरदानोंके बीच, जिनका उन्हें बड़ा अभिमान है, गरीब और दुर्दशाग्रस्त हैं। नहीं, शिक्षाके अभाव के कारण मुझे अपना चरखेका सन्देश उन तक पहुँचाने में कोई कठिनाई महसूस नहीं होती। हमारे अशिक्षित ग्रामीण चरखेका स्वागत ऐसे उत्साहसे करते हैं मानो वह स्वर्गसे आई आशाकी किरण हो। हमारे विचारके प्रसारमें जो चीज बाधक है, वह शिक्षाका अभाव नहीं, चरखेकी तालीम पाये हुए शिक्षकोंकी कमी है।
मैंने श्री गांधी से पूछा : क्या आप समझते हैं कि भारतीय जनता होमरूलके लिए तैयार है?
स्वराज्य के अन्तर्गत होमरूलका में जो अर्थ करता हूँ, उसके लिए तो वह निश्चय ही तैयार है। लेकिन स्वराज्य हमें कोई "दे" नहीं सकता, अंग्रेज लोग भी नहीं दे सकते। स्वराज्य तो हम अपने-आपको खुद ही दे सकते हैं। आस्ट्रेलिया या कैनेडाके संविधानके ढंगका होमरूल हमारा स्वराज्य नहीं है; अलबत्ता, हमारी मौजूदा गुलामीकी दशासे वह बहुत बेहतर होगा। यदि ब्रिटेन हमें पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं देना चाहता तो मैं होमरूलका ही स्वागत करूँगा और इसे स्वीकार करूँगा। भारत उस आधारपर ब्रिटिश राष्ट्र-मण्डलमें प्रवेश करनेकी योग्यता अवश्य रखता है।
भारतकी मौजूदा राजनैतिक व्यवस्थाके समर्थकोंकी इस मान्यताका आपके पास क्या जवाब है कि जातियों और धर्मों आदिके ऐसे मतभेदोंके कारण जिन्हें दूर करना किसी भी प्रकार सम्भव नहीं है, भारत अपना शासन आप चलाने में सफल नहीं हो सकता?
गांधीजी मुस्कराये और बोले :
बेशक हमारे यहाँ भेद तो हैं। किसी भी राष्ट्रमें ऐसे भेद होते ही हैं। ब्रिटेनके संयुक्त राज्यका जन्म भी गुलाबों के युद्धों (वार्स ऑफ रोज़ेज) के भीतरसे ही हुआ था। शायद हम लोग भी आपस में लड़ेंगे। किन्तु एक दूसरेका सिर फोड़ने के इस खेलसे जब हम ऊब जायेंगे तब हमें इस सत्यका दर्शन अवश्य होगा कि प्रजातियों और धार्मिक भेदोंके बावजूद हम भी उसी प्रकार मिलकर रह सकते हैं जिस प्रकार इंग्लैंडमें स्काटलैंड और वेल्सके निवासी रह रहे हैं। जब लोगोंमें जागृति आयेगी, पराधीनताके जुएसे जब उनका उद्धार हो जायेगा तब इस देशमें प्रचलित वे सारी बुराइयाँ, जिन्हें कि हम स्वीकार करते हैं, दूर हो जायेंगी; यहाँतक कि अस्पृश्यताकी वह विघातक कुप्रथा भी दूर हो जायेगी।
क्या होमरूल मिलनेपर आप भारतीय जनताको सार्वजनिक मताधिकार देंगे?
लगभग ऐसा ही होगा। मेरा मतलब यह है कि मताधिकारके इच्छुक हरएक नागरिकको मताधिकार दिया जायेगा। मेरी रायमें जबतक मतदान अनिवार्य नहीं किया