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भेंट : 'स्टेड्स रिव्यू' के प्रतिनिधिसे

वे हमें उनका पालन करनेके लिए विवश नहीं कर सकते। वे कर लगा सकते हैं किन्तु उन करोंको चुकाने के लिए वे चन्द लोगोंको ही बाध्य कर सकते हैं। असहयोग और अहिंसा बन्दूकोंसे कहीं अधिक शक्तिशाली हथियार हैं।

फिर भी बन्दूकोंका अपना उपयोग तो है ही। श्री गांधी, आपके पास बन्दूकें नहीं हैं, इसलिए आप उनकी कीमत कम आँक सकते हैं। यदि आपके पास हथियार होते तो क्या अंग्रेजोंको इस देशसे निकालने के लिए आप उनका उपयोग उचित मानते?

मुझे तो इसकी कल्पना ही अशुभ मालूम होती है। पिछले महायुद्धमें यूरोपके छोटे-छोटे राष्ट्रोंने जो नर-संहार और विनाश किया उसकी बात सोचिए और फिर कल्पना कीजिए कि ३० करोड़ भारतीय यदि हथियार उठा लें तो उसके कितने भयंकर परिणाम होंगे। इसके सिवा, बलके प्रयोगसे तो कभी कोई समस्या हल नहीं होती। बलके प्रयोगसे यूरोपमें जो समझौता हुआ है उससे उत्पन्न उसकी वर्तमान दुरवस्थाका विचार कीजिए। हमें अपने अत्याचारियोंके खिलाफ भी बलका प्रयोग नहीं करना चाहिए; किन्तु अपने ऊपर अत्याचार करनेमें उन्हें सहायता देनेसे इनकार कर देना हमारा कर्त्तव्य है। यही कारण है कि जबतक अंग्रेज लोग हमारे साथ सहयोग करनेको राजी नहीं हो जाते तबतक हमें उनके साथ सहयोग नहीं करना चाहिए।

श्री गांधी, आपने तो काफी पढ़ा है और दुनिया भी घूमी है; आपको यह तो स्वीकार करना ही चाहिए कि यदि यहाँ अंग्रेजोंका नहीं, किसी अन्य देशका शासन होता तो भारतको ज्यादा बुरा व्यवहार सहना पड़ता और यह कि इंग्लैंडने नाराज होनेके अनेक अवसरोंके बावजूद काफी धीरज और संयमसे काम लिया है। आप अंग्रेजोंसे और क्या करनेकी आशा रखते है?

हमारी सारी मांगोंको संक्षेपमें एक शब्दमें व्यक्त किया जा सकता है—यहाँसे चले जाइए। और यदि आप अब भी यहांसे पूरी तरह चले जानेके लिए तैयार न हों तो हमें कमसे कम स्वशासनकी उतनी सत्ता तो दीजिए जितनी आपके स्वशासी उपनिवेशोंको प्राप्त है। हममें इतनी समझ तो है कि जहाँ रोटीका टुकड़ा भी न मिल रहा हो वहाँ आधी लेनेके लिए ही प्रस्तुत हो जायें। किन्तु यदि हमें ब्रिटिश राष्ट्र-परिवारमें शामिल होना है तो हम चाहते हैं कि हमारी बात न केवल हमारे आन्तरिक मामलोंकी व्यवस्था में चलनी चाहिए बल्कि हमारी जनसंख्याके प्रमाणमें वह सारे साम्राज्यके मामलों के सम्बन्ध में भी सुनी जानी चाहिए। दूसरे शब्दों में, हम उस हालतमें यह आशा करेंगे कि साम्राज्य के हितोंका केन्द्र, साम्राज्यके सबसे अधिक आबादीवाले अंगकी हैसियत से तब भारत ही होगा। साम्राज्य के जिस सदस्यको यह परिवर्तन नापसन्द हो उसके पास तब इस परिस्थितिका यही इलाज होगा कि वह ब्रिटिश राष्ट्रोंके इस परिवारसे निकल जाये।

दुनियाका प्रचुर अनुभव रखनेवाले आदमीके नाते आप यह तो जानते ही हैं कि महज आपके कहने से तो अंग्रेज लोग भारत में अपने उन बृहत् आर्थिक और राजनीतिक हितोंका त्याग शायद ही करेंगे जिनके निर्माणमें उन्होंने इतना परिश्रम और बलिदान किया है अतः आप यह बताइए कि अपने इन उद्देश्योंकी व्यावहारिक पूर्तिको आपके

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