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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मनमें क्या तसवीर है? क्या आपका यह खयाल है कि आपके अपने प्रयत्न या बाहरी बावसे अन्तमें आपको मुक्तिकी प्राप्ति हो जायेगी?

हमारे अपने प्रयत्न किसी भी विदेशी शासनको खत्म करने के लिए काफी हैं और मझे निश्चय है कि वे उसे खत्म करेंगे। यदि मेरे सभी देशवासी असहयोग और अहिंसाका मर्म समझ लें और उसपर आचरण करें तो हमें कल ही स्वराज्य मिल जाये। तब वह मानो हमारी गोदमें आकाशसे अनायास आ टपकेगा। लेकिन भारतवासी भी दूसरे मनुष्योंकी तरह दुर्बल हैं, अतः हमें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। किन्तु हमारा सन्देश देशके सुदूरवर्ती गाँवों में भी पहुँच रहा है और लोग उसे समझ रहे हैं और वहाँ उन मिट्टीकी झोंपड़ियोंमें गुनगुनानेवाला हरएक चरखा हमें अपनी अनिवार्य मुक्तिकी दिशा में आगे लिये जा रहा है।

एक सवाल और करता हूँ : आस्ट्रेलियाने वहाँ एशियाइयोंके प्रवेशपर व्यवहारतः जो रोक लगा रखी है उसके बारेमें आपका क्या विचार है?

मैं वैसे आस्ट्रेलियाका प्रशंसक हूँ लेकिन उसकी यह अदूरदर्शितापूर्ण नीति मेरी समझ में नहीं आई। वह आर्थिक, नैतिक और राजनीतिक सभी दृष्टियोंसे अवांछनीय है। लेकिन मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मैंने आस्ट्रेलियाकी समस्याओंका विशेष अध्ययन नहीं किया है। मैं भारतकी समस्याओंको लेकर इतना व्यस्त रहता हूँ कि दूसरी बातोंके लिए समय ही नहीं रहता। इसलिए इस विषयपर, जिसका मैंने अध्ययन नहीं किया है, अपना यह वैयक्तिक और अनधिकृत मत प्रकट करनेसे ज्यादा मैं कुछ नहीं कहना चाहता।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, २७-६-१९२४
 

१४५. पत्र : श्रीमती मैडॉकको

पोस्ट अन्धेरी
१४ मार्च, १९२४

प्रिय श्रीमती मैडॉक[१],

मैं अपने वादे के अनुसार अपनी प्रवृत्तियोंका संक्षिप्त व्योरा यहाँ दे रहा हूँ :

(१) हिन्दुओंमें से अस्पृश्यता के अभिशापको निकालना।

(२) हाथ-कताई और हाथ-बुनाईका प्रचार और हाथके कते और बुने कपड़े के प्रयोगकी और समस्त विदेशी वस्त्रोंके और भारतीय मिलोंमें बुने हुए कपड़े के बहिष्कार की भी वकालत करना।

  1. कर्नल सी॰ मैडककी पत्नी।