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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

की थीं। तबसे मैं बराबर उसी दिशामें सोचता रहा हूँ। एक बार तो यह भी मनमें आया कि मैं अपने विचार व्यक्त करते हुए एक लम्बा-सा पत्र लिखवा भेजूँ। किन्तु मैंने लिखवाया नहीं। इसके तीन कारण रहे। एक तो मुझे इसमें सन्देह था कि यह उचित होगा या नहीं। दूसरे आपकी व्यस्तताको मैं जानता हूँ; इसलिए लम्बा पत्र न लिखना ठीक जान पड़ा और तीसरे यह कि मैं अपने रोजमर्राके आवश्यक कार्योंके लिए अपनी शक्ति सुरक्षित रखना चाहता था। यदि आप मूल कार्यक्रमको पूरा करनेमें सफल हो गये तो फिर हम जल्दी ही मिलेंगे।

मुझे आशा है कि आप तमाम बड़े-बड़े आश्चर्यजनक कामोंको करते हुए भी स्वस्थ होंगे।

हृदयसे आपका,

[पुनश्च :]

आपका दूसरा तार मुझे अभी मिला है। मैं कितना चाहता हूँ कि मेरे विचार आपके विचारोंसे मिल सकते और मैं आपकी खुशी में पूरी तरह हिस्सा बँटा सकता।

पण्डित मोतीलाल नेहरू
२५, वेस्टर्न होस्टल
दिल्ली

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५२५) की फोटो-नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५११८ से।

 

१७४. पत्र : फ्रांसिस लो को[१]

पोस्ट अन्धेरी
१८ मार्च, १९२४

प्रिय श्री लो,

मुझे आपका १७ तारीखका पत्र मिला। अगले बृहस्पतिवार को सुबह ९ बजे आपके प्रतिनिधिसे मिलकर मुझे खुशी होगी।

हृदयसे आपका,

श्री फ्रांसिस लो
'ईवनिंग न्यूज ऑफ इंडिया'
टाइम्स बिल्डिंग
बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५२४) की फोटो नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१२३ से।
  1. तत्कालीन सहायक सम्पादक फ्रांसिस लो ने सुझाव दिया था कि गांधीजीके स्वास्थ्यको देखते हुए भेंट लम्बी न हो; उनपर बोझ न पड़े बल्कि विवरणका आधार प्रतिनिधिपर पड़े हुए प्रभावको ही बनाया जाना चाहिए। रिपोर्ट के लिए देखिए "भेंट : टाइम्स ऑफ इंडियाके प्रतिनिधिसे", २०-३-१९२४।