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पत्र : एस॰ ई॰ स्टोक्सको

सकता। यदि मेरे मनमें आप जैसी बात उठती तो मैं सोचता इस प्रकार कियेधरे-पर पानी फेरकर लोगोंने सच्ची वस्तु प्राप्त करनेके लिए बलिदान ही किया है। यह सच्ची वस्तु क्या है? साधारण जनताके लिए सच्ची वस्तु प्राप्त करनेका अर्थ शक्ति के प्रति अन्धविश्वाससे अपनेको मुक्त करना है। युगोंसे उसे अपने हर काम तथा अपनी रक्षा के लिए सरकारका मुँह ताकना सिखाया गया है। सरकार उसके लाभका साधन बनने की बजाय उनसे अलग और ऊँची एक ऐसी चीज बन गई है जो चाहे दुष्ट हो चाहे सदय, जनताको उसे देवताकी तरह मानना होता है। मेरी कल्पनाके अनुसार असहयोगका मतलब उस सरकार के साथ सहयोग न करना है, जिसके विषयमें उक्त विचार रूढ़ हो गये हैं। उसका मतलब लोगोंको यह महसूस करनेकी तालीम देना है कि सरकार उनकी बनाई हुई है; वे सरकारके बनाये हुए नहीं हैं। इसलिए सरकार के माध्यम से हम अबतक जो तथाकथित लाभ पाते रहे हैं यदि हमें [असहयोगके कारण] उनमें से अनेकका परित्याग करना पड़े तो यह आश्चर्यकी बात नहीं होगी। यदि हमारा असहयोग अहिंसात्मक न होता तो हम सरकारको उसीके साधनों अर्थात् शस्त्रोंकी शक्ति से उसी प्रकार परास्त करनेकी कोशिश करते, जिस प्रकार इतिहासमें सभी राष्ट्रोंने की है। ऐसे संघर्षमें सरकार रूपी मशीनके एक-एक पुर्जेंका उपयोग न करना एक भूल होगी। हिंसापूर्ण संघर्ष में लोग आत्म-बलिदानकी आशा भले न करें किन्तु वे उसके लिए तैयार होते हैं। अगर उनके पास सरकारसे अच्छे शस्त्र हैं, तो वे बिना किसी आत्म-बलिदानके उसे परास्त कर देते हैं। किन्तु अहिंसात्मक संघर्ष में शस्त्रोंका सहारा नहीं लिया जाता और उसमें तात्कालिक आत्म-बलिदान अनिवार्य होता है। अपने इस संघर्ष में भी हम अमली तौरपर सितम्बर १९२०[१] से आत्म-बलिदान करते रहे हैं। वकील, अध्यापक, विद्यार्थी, व्यापारी हर वर्गके लोग, जिन्होंने अहिंसात्मक असहयोगका आशय समझा है, सभीने अपनी योग्यता और कल्पनाके अनुसार कुर्बानियों की हैं। मैं ऐसे लोगोंको जानता हूँ जिन्होंने आर्थिक हानिको इसलिए स्वीकार कर लिया कि उन्हें अदालतमें जाना स्वीकार नहीं था। सरकारी अधिकारियोंको गर्व और आनन्दसे यह कहते भी सुना गया है कि जो लोग उनके साथ सहयोग करनेके कारण पहले लाभ उठाते थे अब असहयोग करके नुकसान उठा रहे हैं। परन्तु जिन्होंने संघर्षको पूरी तरह समझकर नुकसान उठाया, उन्होंने उसे लाभ ही माना है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि वर्तमान शासन-प्रणाली और प्रशासकोंकी वर्तमान मनोवृत्तिके रहते, तबतक परिषदोंमें जाना सम्भव नहीं है जबतक कि आप उस अत्यन्त निकृष्ट प्रकारकी हिंसामें भाग नहीं लेते, जिसपर भारत सरकार डटी है। फिर संसारकी अन्य सरकारोंके इतिहासको लीजिए। उदाहरण के तौरपर में मिस्रकी सरकारको लेता हूँ। वहाँके लोग जो कुछ चाहते हैं, वे उसे लगभग हासिल कर चुके हैं। उन्होंने अबतक संसारमें अपनाये गये सामान्य उपायोंका सहारा लिया। मिस्रके लोगोंको शस्त्रोंका उपयोग करनेका अभ्यास था और इसलिए उनके लिए परिषदों तथा सम्पूर्ण प्रशासनिक ढाँचेका उपयोग कर देखनेका मार्ग खुला था। क्योंकि उसमें असफल होनेपर

  1. देखिए खण्ड १८।