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भेंट : 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के प्रतिनिधिसे


सन्ध्या समय लगभग ६ बजे श्री एन्ड्रयूज उन्हें समुद्र के किनारे टहलानेके लिए ले जाते हैं। टहलनेका यह वक्त अब बढ़ाकर करीब ४० मिनट कर दिया गया है। दिन-भरका सारा काम रातको आठ बजेतक समाप्त हो जाता है जिसके बाद श्री गांधी सामान्यतया सोने चले जाते हैं। उन्होंने बताया :

ज्यों ही मैं थकान महसूस किये बिना बैठने लायक हो जाऊँगा, कताई शुरू कर दूँगा।

"आपका नई लेबर सरकारके बारेमें क्या खयाल है?" यह पहला राजनीतिक प्रश्न था जो हमारे प्रतिनिधिने श्री गांधीसे पूछा। स्पष्ट ही उनकी निगाह में यह कोई महत्त्वपूर्ण बात नहीं थी।

उसकी स्थिति डाँवाडोल है। इसे अनेक दलोंकी सदिच्छापर निर्भर करना पड़ेगा, और यदि वह टिकी रहना चाहती है तो जरूरी है कि वह अपने कसकर काम लेनेवाले मतदाताओंको तुष्ट करे और देशके लिए अपने विशेष कार्यक्रमको पूरा करे। अपने इस कार्यक्रमको पास करानेके लिए सदनके बहुमतका समर्थन प्राप्त करनेकी कोशिशमें वह भारत या दक्षिण आफ्रिका और केनियाके भारतीयोंसे सम्बन्धित साम्राज्यीय नीतिके बारेमें अपने सिद्धान्तोंकी बलि देनेमें नहीं हिचकेगी, इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं है; और यह देखते हुए कि वह [लेबर सरकार] कितनी कमजोर है, मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं होगा कि जहाँतक भारतीय नीतिका सवाल है, वह अपनेसे पहलेवाली सरकारोंसे भी बुरी सिद्ध हो।

श्री गांधीने कहा कि लेबर सरकारके आ जानेसे मेरे मनमें किसी प्रकारकी परेशानी नहीं है क्योंकि भारतको स्वयं अपनी ही शक्ति और साधनोंपर भरोसा रखना है।

जब भारत अदम्य शक्ति प्राप्त कर लेगा तो इसमें कोई सन्देह नहीं है कि लेबर, कंजरवेटिव या लिबरल, कोई भी सरकार उसकी माँग के औचित्यको स्वीकार करेगी।

कौंसिल-प्रवेश और मध्य प्रान्त तथा असेम्बलीकी हालकी घटनाओंके विषयमें श्री गांधीने स्पष्ट रूपसे कहा कि में इनके बारेमें कुछ भी नहीं कह सकता। उन्होंने बताया कि स्वराजी नेता मुझसे मिलनेके लिए इस माहके अन्तमें दिल्लीसे आ रहे हैं और जबतक में उनके साथ सारी स्थितिपर बातचीत नहीं कर लेता तबतक उनके कार्यों के बारेमें कोई राय नहीं दे सकता। बातचीत के बाद में अपनी नीति निर्धारित करनेकी स्थितिमें हो जाऊँगा ।

उपनिवेश समितिके बारेमें जो केनियाकी समस्याके सिलसिले में जाँच करनेके लिए हाल ही में जहाजसे रवाना हुई थी, प्रश्न किये जानेपर श्री गांधीने कहा कि अगर बहुत ज्यादा प्रतिबन्धसे उसके हाथ बँधे हुए न हों तो यह समिति बहुत कुछ कर ले जायेगी। उन्होंने आगे कहा :

समिति अपने निष्कर्षोंपर अमल करा लेने लायक ताकतवर है या नहीं सो कहना कठिन है। एक असहयोगी के रूपमें मेरे विचार कुछ भी क्यों न हों लेकिन

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