१९०. पत्र : डी॰ वी॰ गोखलेको
पोस्ट अन्धेरी
२१ मार्च, १९२४]
श्री शरीफ देवजी कानजीने मुझे 'केसरी' का एक अंश दिखाया था, जिसमें उनपर आरोप लगाया गया था कि मेरी मध्यस्थताकी परवाह न करते हुए वे सरकारके पास जा पहुँचे। उस अंशको देखकर मुझे दुःख हुआ। मैंने उन्हें एक पत्र[१] लिखा है, जिसे शायद वे प्रकाशित करेंगे तब आप उसे देखेंगे। यह भी मेरी नजरमें आया है कि इसे लेकर समाचारपत्रों में एक आन्दोलन ही शुरू हो गया है। मुझे हैरानी है कि यह सब करनेकी क्या जरूरत थी। क्या पंच-निर्णयकी सब आशाएँ खत्म हो गई हैं? श्री शरीफ देवजी कानजीने मुझे बताया कि वे और उनके साथके न्यासी पंच निर्णय के लिए तैयार हैं। यदि आप किसी भी प्रकार ऐसा कर सकते हों तो मैं चाहूँगा कि आप यह आन्दोलन बन्द करा दें और सम्बद्ध पक्षोंको पंच निर्णय स्वीकार करने के लिए राजी करें। मैंने सोचा, आप श्री केलकरके लौट आने के इन्तजार में है। मेरा खयाल है कि वे महीने के अन्ततक वापस आ जायेंगे। मैं आप लोगोंसे धैर्य रखने की प्रार्थना करता हूँ।
हृदयसे आपका,
सम्पादक, 'मराठा'
- अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५५३) की फोटो-नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१३४ से।
१९१. पत्र : सेवकराम करमचन्दको
पोस्ट अन्धेरी
२१ मार्च, १९२४
- आपका पत्र[२] मिला।
मैं तो यह समझता हूँ कि ईश्वरका नाम लेना और ईश्वरका काम करना, ये दोनों साथ-ही-साथ चलते हैं। इन दोनोंमें से किसीको कम या किसीको ज्यादा महत्त्व-