पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/३४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पूर्ण माननेका सवाल नहीं उठता, क्योंकि दोनोंको एक-दूसरेसे जुदा नहीं किया जा सकता। तोतेकी तरह ईश्वरके नामका जाप करना तो बिलकुल ही बेकार है; और अगर कोई सेवा या काम यह सोचे-समझे बिना किया जाये कि वह ईश्वरके नामपर और ईश्वर के लिए किया जा रहा है, तो उसका भी कोई महत्त्व नहीं रह जाता। हमें कभी-कभी कुछ समय केवल अपने इष्ट देवके नामका जाप करनेमें ही लगाना पड़ता है; और जब हम वैसा करते हैं तो उसका मतलब सिर्फ इतना ही होता है कि उस तरहसे हम अपने-आपको पूरे तौरसे ईश्वरके हाथों सौंप देनेके लिए तैयार करते हैं, अर्थात् हम अपने-आपको ईश्वरकी खातिर और उसीके नामपर सेवा करनेके लिए तैयार करते हैं और जब हम हर तरहसे उसके योग्य बन जाते हैं, तब उस भावनासे लगातार सेवा करते रहना अपने-आपमें ईश्वर के नामके जापके बराबर हो जाता है। फिर भी अधिकांश लोगोंके लिए प्रार्थनाका एक निश्चित समय अलग रखना बहुत ही जरूरी है। जहाँतक मैं समझता हूँ, इसीलिए सभी धर्मोके शास्त्रोंने, और भारतीय धर्मशास्त्रोंने तो निश्चय ही, गुरुको बिलकुल अपरिहार्य बतलाया है। पर अगर हमको सच्चा और ठीक गुरु न मिले, तो झूठमूठका गुरु बना लेना बेकार ही नहीं, नुकसानदेह भी होता है। मेरा तो खयाल है कि दसवें गुरुने इसी वजहसे 'ग्रन्थ साहबको' ही आखिरी गुरुके पदपर बैठा दिया था।

मेरा कोई भी आध्यात्मिक गुरु नहीं है, लेकिन मैं चूंकि इस परम्परामें विश्वास करता हूँ, इसलिए मैं पिछले तीस वर्षसे अपने लिए एक सच्चे गुरुकी तलाशमें हूँ। मैं तलाश कर रहा हूँ—यही बात मुझे सबसे अधिक सान्त्वना देती है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सेवकराम करमचन्द
गुरु संगत
हीराबाद
हैदराबाद (सिन्ध)

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५५४) तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१३५ से।