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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेख जल्दी में घसीटा हुआ नहीं होना चाहिए। तुम्हें उसके लिए जानकारी जुटाने में काफी मेहनत करनी चाहिए। मुझे तो सबसे ज्यादा खुशी इसी बातसे होगी कि तुम उसमें अपने जिलेमें चलनेवाले खद्दरके काम, अस्पृश्यता निवारण आन्दोलन, राष्ट्रीय शिक्षा आदिके बारेमें आँकड़े पेश करो। ऐसा लेख तुम साबरमती के पतेपर न भेज-कर सीधा मेरे पास भेज दिया करो।

तुम्हारा,

श्रीयुत जॉर्ज जोजेफ,
चैंगानूर (त्रावणकोर)

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५५२) की फोटो नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१३६ से।
 

१९४. पत्र : लाला लाजपतरायको

पोस्ट अन्धेरी
२१ मार्च, १९२४

प्रिय लालाजी,

आपने एन्ड्रयूजको जो पत्र लिखा है, वह उन्होंने मुझे दिखा दिया है। मैंने आपके नाम गौरीशंकर मिश्रका पत्र भी देख लिया है। आप यहाँ २७ तारीखको आ ही रहे हैं इसलिए अभी इस पत्र में कुछ लिखने की जरूरत नहीं है। हम लोग मिलनेपर खास तौर से गौरीशंकर मिश्रके मामले और दूसरे वकीलोंके उसी तरहके मामलों के बारेमें बात करेंगे। अगर आप मेरी राय जानना चाहें तो मुझे इसमें जरा भी शक नहीं है कि स्वास्थ्य और शक्ति-लाभ के लिए आपका स्विट्जरलैंड जाना बिलकुल उचित है। आप न चन्दा इकट्ठा कर सकते हैं और न कोई दूसरा ऐसा मेहनत तलब काम कर सकते हैं, जिसके लिए आप खासतौरसे उपयुक्त हैं। फिर यहाँ बीमार पड़े रहने से फायदा ही क्या? आप वहाँ मौज-मजेके लिए तो जा नहीं रहे हैं, आप तो एक मकसद लेकर जा रहे है—अर्थात् इसलिए कि आप वापस आकर पहले की तरह अपना काम ज्यादा कारगर ढंगसे कर सकें। अपने फर्जसे भागना तो तब कहा जाता जब आप दुनियाके सैर-सपाटे के लिए जाते या किसी करोड़पतिकी तरह नुमाइशें और तमाशे देखने जाते। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप अपने मनमें आये हुए इस अवसादको दूर कर दें और देशकी सेवाका काम मानकर स्विट्जरलैंड जायें।

हृदयसे आपका,

लाला लाजपतराय
लाहौर

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५५५) की फोटो नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१३७ से।