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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इतना अभ्यास कर लेंगे कि मेरा काम कर सकें। जो भी हो, मेरे साबरमती आश्रम चले जानेपर या यात्राएँ शुरू करनेपर कामका भार इतना ज्यादा नहीं रह जायेगा। मैं चाहता हूँ सोच-विचारकर स्थिरतापूर्वक जितना भी लेखन कार्य मुझे करना है, स्वास्थ्य के लिए आरामकी इस अवधि में ही मैं उसका अधिकांश पूरा कर लूँ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत च॰ राजगोपालाचारी,
एक्सटेन्शन,
सेलम

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ८५५६) की फोटो नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१३२ से।
 

१९६. भेंट : 'लिवरपूल पोस्ट' और 'मर्क्युरी' के प्रतिनिधिसे

[२१ मार्च, १९२४

आज मैंने गांधी के साथ घन्टे भरसे कुछ अधिक समयतक बातचीत की। उनका पुत्र और सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूज दोनों बरामदेसे बाहर बराबर इधर-उधर घूमते रहे। सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूज अंग्रेज हैं, जो आफ्रिकी भारतीयोंकी माँगोंके समर्थक रहे हैं और उनकी लम्बी दाढ़ी, भारतीय वेश-भूषा तथा नंगे पैर साफ बता रहे थे कि उस व्यक्तिने स्वेच्छा से अपनी जातिका परित्याग कर दिया है। गांधीके पास बहुतसे स्वराज्यवादी लोग बराबर आते-जाते रहते हैं। इस व्यस्तताके बावजूद उनसे मिलने-पर मेरे मनपर यही छाप पड़ी कि लम्बे कालके कारावास और बीमारीने उनकी सौजन्यपूर्ण आत्माको और अधिक निखार दिया है, अधिक विनयपूर्ण बना दिया है। गांधीने बार-बार अपने उस विचित्रसे सिद्धान्तकी विफलता स्वीकार की जिसके बलपर वे भारतको एक ऐसा राष्ट्र बना देनेकी आशा सँजोये थे जो इस भौतिकता-वादी संसारके लिए अभूतपूर्व हो। उन्होंने आशा सँजो रखी थी कि भारतको इस सिद्धान्तके द्वारा वे एक ऐसा सादगी पसन्द अहिंसात्मक राष्ट्र बना देंगे जो अपने गुणके बलपर एशियाके अवसरवादी राष्ट्रोंके बीच भी अपनी स्वतन्त्रता बरकरार रख सकेगा। इस गुणको उन्होंने "आत्म-बल" की संज्ञा दी है।

विधानसभा में सरकारी अनुदानकी माँगोंको बहुमतसे ठुकरानेके बाद अब लोग गांधीको भारत भर में सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलानेके लिए सहमत करना चाहते हैं। इस आन्दोलनका मतलब है सभी प्रकारके करोंकी अदायगीके विरुद्ध प्रचार करना। सभी जानते हैं कि गांधीने शुरूमें ही इन सरकारी कौंसिलोंमें शामिल होनेका विरोध किया था और सरकारी काममें बाधा डालनेकी स्वराज्यवादियोंकी योजनाका समर्थन नहीं किया था। लेकिन स्वराज्यवादियों की सफलताने देशमें उथल पुथल मचा दी है