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भेंट : 'लिवरपूल पोस्ट' और 'मर्क्युरी' के प्रतिनिधिसे

और अन्य राजनीतिज्ञोंसे कहीं पहले स्वराज्य-आन्दोलन खड़ा करनेवाले इस नेताको अब अपने कारावास कालमें उन अन्य राजनीतिज्ञों द्वारा प्राप्त की गई प्रतिष्ठाके आगे सिर झुकाना पड़ेगा।

सविनय अवज्ञाके अस्त्र के प्रयोगकी सलाह सदा ही दी जा सकती है, जब सरकारें लोकतन्त्रपर आधारित न हों; और इस अस्त्रका प्रयोग सिर्फ उसी अवस्थामें व्यावहारिक है जब जनताके हृदयमें अहिंसाकी भावना पूरी तौरपर घर कर ले।

गांधीने कहा :

यदि स्वराज्य दे दिया जाये तो अब भारत इसके लिए तैयार है, पर अभी भारत स्वयं बल-प्रयोगके जरिये अथवा अनुशासित अहिंसाके बलपर स्वराज्य हासिल करने में समर्थ नहीं है। बल-प्रयोगका तो मैं स्वयं विरोधी हूँ।

इसके बाद गांधीने स्वराज्यको परिभाषा की :

स्वराज्यका अर्थ है संसदीय शासन-व्यवस्था; लेकिन मेरा आशय यह नहीं कि वह पाश्चात्य देशों-जैसी संसदीय व्यवस्था होगी, जहाँ व्यक्तिगत स्वार्थीका ही बोल-बाला है। स्वराज्यका अर्थ यह भी है कि भारत अपनी प्राचीन जीवन-पद्धतिकी ओर लौटे। वर्षोंतक मेरे इस विचारकी खिल्ली उड़ाई गई है, पर अब भी मेरा यही विश्वास है कि यदि घर-घरमें चरखा चलने लगे तो वह ब्रिटिश फैक्टरियोंको उखाड़ सकता है। और यदि यह सही है तो फिर ब्रिटिश अधिराज्यका मूल आधार—ब्रिटिश पूँजी—हमसे किसी भी किस्मका मुआवजा पानेकी आशा कैसे कर सकता है? मैं खुद तो विदेशी आयातपर करोंके रूपमें कोई प्रतिबन्ध लगाने में विश्वास नहीं करता।

ब्रिटिश अदालतों, स्कूलों और कौंसिलोंके विख्यात त्रिमुखी बहिष्कारके बारेमें गांधी निराश थे। उन्होंने बतलाया कि अब वे आयरलैंडके सिनफेन दलवालोंके न्यायाधिकरणों-जैसी पंचायतें या मध्यस्थ अदालतें खड़ी करनेकी कोशिश करेंगे, जो मुकदमोंके फैसले ब्रिटिश न्याय-व्यवस्थाका सहारा लिए बिना ही कर दिया करेंगी। स्कूलोंके सिलसिले में गांधी सिर्फ यह चाहते हैं कि गैर-सरकारी शिक्षण-संस्थानोंको ऐसा बनाया जाये कि लोग उनकी ओर आकर्षित हों। मैंने पूछा कि सरकारी स्कूलोंके मुकाबले राष्ट्रीय शालाओंके पाठ्यक्रम में क्या विशेषता है। उन्होंने उत्तर दिया कि ये स्कूल विचार-स्वातन्त्र्यकी शिक्षा देते हैं, जब कि सरकारी स्कूल सिर्फ वही नपे-तुले कायदे कानून विद्यार्थियोंके दिमागमें बैठानेकी कोशिश करते हैं जो देशके लोगोंको वर्तमान शासनके अन्तर्गत सेवाके उपयुक्त बनानेके लिए जरूरी जान पड़ते हैं। गांधीने बिलकुल स्पष्ट कहा कि पाश्चात्य नमूनेके स्कूल भारतीयोंको बिलकुल मशीन-जैसा बना देते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिटिश मालके बहिष्कारके परिणामस्वरूप ब्रिटिश शासकों को भारत छोड़कर चले जाना पड़ेगा; लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अभी इसका समय नहीं आया है।

यह पूछनेपर कि क्या वे शीघ्र ही स्वराज्य-प्राप्तिको आशा करते हैं; गांधीने इसका नकारात्मक उत्तर ही दिया। उन्होंने लन्दन विश्वविद्यालय में अपने विद्यार्थी कालके