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भाषण : बम्बईके विद्यार्थियों और अध्यापकों के समक्ष

मजबूत नहीं रही है, जितनी कि पहले थी। उनके विचारसे ब्रिटिश शासकोंके विरुद्ध संघर्षका दारोमदार इसी एकतापर है।

हैजाज के शाहसे काम नहीं चलेगा। सभी मुसलमानोंका खयाल है कि वह ब्रिटेनका प्रतिनिधि है।

गांधीने स्पष्ट कहा कि अंग्रेजोंने भारतमें आनेके बाद देशके लोगोंको सैनिक दृष्टिसे 'पौरुषहीन' बना दिया गया है और यह भारतके लिए एक बहुत बड़ी कठिनाई है।

मैं जिस चीजको खत्म करना चाहता हूँ, वह है भारतीयोंके दिलोंमें पैठा हुआ गोरी चमड़ीका जबरदस्त डर। मैं जब बच्चा था तब यह डर आजसे कहीं अधिक व्यापक था।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १४-४-१९२४
 

१९७. भाषण : बम्बईके विद्यार्थियों और अध्यापकोंके समक्ष[१]

[२१ मार्च, १९२४]

कहने की जरूरत नहीं कि आज आप सब लोगोंसे मिलकर मुझे बड़ी खुशी हुई है। आपने मुझे जो चन्द चीजें भेंट दी हैं, उनके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। इनमें कमसे कम दो चीजें ऐसी हैं, जिनका आजकल मेरे लिए एक विशेष अर्थ है। आपने धुनाईके लिए एक चटाई दी है और कुछ पूनियाँ भी तैयार करके मुझे दी हैं। ये मुझे कताई और धुनाईका काम तुरन्त ही हाथमें लेनेकी याद दिलाती हैं। मैं जब भी इस काम में अपनेको लगाता हूँ, मुझे लगने लगता है कि स्वराज्य निकट आता जा रहा है। इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि आप ईश्वरसे प्रार्थना करें, मैं जल्द ही पूरी तौरपर चंगा हो जाऊँ, जिससे कि मैं यथासम्भव शीघ्र ही इस कामको उठानेमें समर्थ हो सकूँ। मैं चाहता हूँ कि आप भी चरखा चलाने में समय दें। मुझे विश्वास है कि आप लोग भी यही महसूस करेंगे कि चरखा स्वराज्यको निकट लाता है। यदि हम अपनी सारी शक्ति रचनात्मक कार्यक्रममें लगायें, तो हम जो कुछ चाहते हैं वह सब हमें निश्चय ही मिल जायेगा। आपने ललितजी के स्वरमें कविवर नरसी मेहताका सुन्दर गीत ध्यानसे सुना होगा। मैं चाहता हूँ कि आप लोग ऐसे धार्मिक गीतोंका वास्तविक अर्थ समझें, और ऐसी कविताओंके उच्चादर्शोंको अपने आचरण में उतारनेकी पूरी-पूरी चेष्टा करें। लेकिन मैं आपको आगाह कर दूँ कि इन सुन्दर गीतोंमें कहे गये आदर्शो पर चलना इन्हें रचनेवालोंतक के लिए काफी कठिन पड़ता है।

मुझे याद है कि मैं जब पहली बार आपके स्कूलमें आया था, तब मैंने आपसे कहा था कि आप लोगोंको संगीत विद्यामें अभी बहुत कुछ सीखना है।

  1. बम्बई राष्ट्रीय शाला के विद्यार्थियों और अध्यापकोंका एक दल गांधीजीसे जुहूमें मिला था। उन्होंने गांधीजी को एक मानपत्र और दस्तकारीको अपनी तैयार की हुई कुछ वस्तुएँ भेंट की थीं।