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सम्पूर्णं गांधी वाङ्मय


इस सम्बन्धमें अपने विविध अनुभवों और कष्टोंसे भरे हुए जीवनकी कुछ घटनाओंका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा :

१८९६ में रायटरने कुछ ही वाक्योंमें मेरी एक पुस्तिकाका[१] सार तारसे डर्बन भेज दिया था। यह पुस्तिका मैंने भारतमें नेटाल स्थित भारतीयोंकी स्थितिके बारेमें लिखी थी। जब मैं डर्बन गया तो इस तारके कारण मुझे वहाँ बहुत यन्त्रणाएँ भोगनी पड़ीं।[२] यद्यपि यह गलतबयानी जान-बूझकर नहीं की गई थी, फिर भी अठपेजी आकारके ३० पृष्ठोंकी पुस्तिकाके इतने अधिक संक्षेपीकरणसे, मेरे कथनका बहुत ही गलत रूप सामने आता था। जब नेटालके यूरोपीयोंको यह ज्ञात हुआ कि मैंने भारतमें क्या कहा था तो उन्हें मेरे साथ किये अपने दुर्व्यवहारपर बहुत खेद हुआ था।

'टाइम्स' ने 'मेसेज फ्रॉम मि॰ गांधी' की जो खिल्ली उड़ाई है, उसका उल्लेख करते हुए महात्माजी ने कहा :

श्रीमती नायडूके नाम मेरा सन्देश 'टाइम्स' में और अन्य पत्रोंमें भी छपा था। मेरा खयाल है कि श्रीमती नायडूका भाषण जोरदार तो था किन्तु वह क्षोभजनक कदापि न था। वे बहुत चतुर हैं; उन्होंने दक्षिण आफ्रिकाकी स्थितिकी गम्भीरता न समझी हो, यह नहीं हो सकता। 'टाइम्स' को भेजे गये विशेष तारसे यह प्रकट होता है कि उनके मनमें अगर कोई भाव है तो वह समझौतेका भाव है। उदाहरणार्थ कहा जाता है कि उन्होंने भारतीयोंमें से कुछ वर्गोंके जीवनका स्तर नीचा होने से कुछ आर्थिक खतरा होनेकी बात स्वीकार की है। यह सिद्ध किया जा सकता है कि उनका रहन-सहन उसी स्थिति के फुटकर व्यापारियोंके रहन-सहनसे ज्यादा बुरा नहीं है। यह कोई मेरा अपना विचार नहीं है, बल्कि यूरोपीयोंका है; और भारतीयोंके विरुद्ध इस आधारपर भी शिकायत नहीं की जा सकती कि वे भारतको रुपया भेजते हैं। आँकड़ोंसे यह सिद्ध किया जा सकता है कि दक्षिण आफ्रिकासे भारतीयोंकी अपेक्षा यूरोपीय कहीं अधिक रुपया बाहर भेजते हैं। श्रीमती नायडूने जो वक्तव्य दिया है यदि उसे उसके समग्र रूपमें देखा जाये तो सम्भव है कि उसमें कुछ ऐसे शब्द भी मिल जायें जिनसे वक्तव्यका अच्छा अर्थ निकल आता हो। कुछ भी हो, बातोंको 'टाइम्स' ने जिस दृष्टिकोण से देखा है, उस दृष्टिकोणसे देखते हुए भी यही माना जायेगा कि, यदि श्रीमती नायडूने भूल की है तो वह सही दिशामें ही की है। मुझे इस बातका कोई अन्देशा नहीं कि दक्षिण आफ्रिकामें उनकी मौजूदगीसे भारतको कुछ हानि पहुँच सकती है; भले ही उनके मुँहसे असावधानीमें कुछ आपत्तिजनक बात निकल गई हो।

जब यह बातचीत धीरे-धीरे राजनीतिको गम्भीर समस्याओंकी ओर बढ़ रही थी तभी खादीकी कमीज और धोती पहने हुए और हाथमें लन्दन 'पंच' का नया अंक लिये हुए श्री एन्ड्रयूज वहाँ आ गये। इससे वातावरणमें सजीवता आ गई। उन्होंने मुस्कराते हुए विनोदमें कहा, "महात्माजी, यदि आप अभीतक अमर नहीं हुए हैं, तो अब आपको अमर बना दिया गया है।"

  1. देखिए खण्ड २, पृष्ठ १-५९।
  2. देखिए खण्ड २, पृष्ठ २२५-२७।