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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मेरा खयाल यह है कि अगर यह पार्टी बहुत बड़े बहुमत से भी अपनी सरकार बनाती है तब भी मेरे इस विचारमें अधिक परिवर्तन नहीं होगा, क्योंकि लेबर पार्टी-की सरकार जबतक पहला स्थान लोकप्रियता के बजाय सिद्धान्तोंको न दे तबतक उसके लिए भारत के सम्बन्धमें वस्तुतः कोई उदार कानून बनानेका दायित्व ओढ़ना कठिन होगा; और अगर वह ऐसा करती है तो उसकी गृह-नीति खतरे में पड़ जायेगी।

जब बातचीत पिछले दो सालकी राजनैतिक घटनाओंपर आयी, तब महात्माजीने बोरसद सत्याग्रहके परिणामोंपर पूर्ण सन्तोष प्रकट करते हुए कहा :

बोरसद सत्याग्रहसे जो शिक्षा मिलती है वह अत्यन्त मूल्यवान है। यह सच है कि बम्बई सरकारने स्थितिको ठीक-ठीक समझने में जो विवेकशीलता और बुद्धिमत्ता दिखाई उसके लिए वह धन्यवादकी पात्र है; किन्तु दूसरी ओर यह भी उतना ही सच है कि बोरसद के सत्याग्रही तो पूर्ण अहिंसा, निश्चयकी दृढ़ता और अपने उद्देश्यकी न्याय्यतासे अजेय ही बन गये हैं। और यदि एक पूरा ताल्लुका एक छोटी और खास बुराईके सम्बन्धमें सफल सत्याग्रहके लिए संगठित हो सकता है तो एक आम और गहरी पैठी हुई बुराईके सम्बन्धमें अपेक्षाकृत बड़े पैमानेपर सत्याग्रहका संगठन भी सम्भव होना चाहिए। इसके लिए जिस चीजकी आवश्यकता है वह है ऐसे कार्यकर्त्ताओं का पर्याप्त संख्या में सुलभ होना जिनका अपने ध्येय और साधनोंमें अटूट विश्वास हो। स्वयं श्री वल्लभभाई पटेलमें यह विश्वास था और उनके पास वैसे ही विश्वसनीय कार्यकर्त्ता भी थे।

संवाददाताने उनसे पूछा कि पूर्ण स्वस्थ होनेके बाद वे क्या करना चाहते हैं। महात्माजीने कहा कि उस समय देशके सामने जो स्थिति होगी, कार्यक्रम उसके अनुसार होगा।

स्वास्थ्य लाभ करनेके बाद मेरा कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं है। चूँकि मैं किसी भी आकस्मिक परिस्थितिसे निबटने के लिए स्वतन्त्र रहना चाहता हूँ, इसलिए मैं पहले से ही कोई जिम्मेवारी स्वीकार नहीं कर रहा हूँ।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २९-३-१९२४