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२२६. पत्र : पी॰ शिवसाम्ब अय्यरको

पोस्ट अन्धेरी
२७ मार्च, १९२४

प्रिय श्री शिवसाम्ब अय्यर,
आपका १४ तारीखका पत्र मिला।

मैं आपकी कठिनाई समझता हूँ; किन्तु मैं आपको क्या सलाह दूँ अथवा आपकी कैसे सहायता करूँ, यह नहीं जानता। मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि यदि आपको देशभक्त कोंडा वेंकटप्पैयाका कोई पत्र न मिला हो तो आप जाकर उनसे मिलें और उन्हें अपनी स्थिति समझायें। यदि यह जानकर आपको कुछ सान्त्वना मिले तो मैं कहना चाहता हूँ कि आप जिस कठिनाई में पड़े हुए हैं, वह कोई ऐसी कठिनाई नहीं है जो सिर्फ आपपर ही आई है। यह कठिनाई बहुत-से असहयोगियोंके सामने है। और इसी तरह बहुत-से सहयोगी भी ऐसी कठिनाइयोंमें फँसे हैं। अन्तर सिर्फ इतना है कि जहाँ असहयोगी चाहें तो इस बातसे सन्तोष प्राप्त कर सकते हैं कि उनकी कठिनाई अपने अन्तरात्माके आदेशके अनुसार चलनेके कारण है, वहाँ सहयोगियोंको यह सन्तोष भी प्राप्त नहीं है।

आपके नारियलोंकी चोरी होते रहनेकी समस्याको हल करनेके दो मार्ग आपके सामने हैं : एक मार्ग यह है कि आप उनपर परिश्रम करते रहें और चोरोंको जबतक उनका जी न भर जाये, फल चुराने दें। मैं मानता हूँ कि यह बहुत व्यावहारिक नहीं, आदर्श परामर्श है। दूसरा मार्ग वह है जो आपने बताया है; अर्थात् जबतक बाड़ लगाकर, अथवा ऐसे किसी अन्य उपायसे आप पेड़ोंकी रक्षा न कर सकें तबतक उनमें पानी न दें और उन्हें सूख जाने दें।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत पी॰ शिवसाम्ब अय्यर

किल पुढपक्कम
ताल्लुका चेजार

डाकखाना तिरुवेतिपुरम्
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰, ८५९५) की फोटो-नकलसे।