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२३१. पत्र : आर॰ एन॰ माण्डलिकको

पोस्ट अन्धेरी
२८ मार्च, १९२४

प्रिय श्री माण्डलिक,

'नवाकाल' का निशान लगा हुआ अंक[१], जिसका उल्लेख आपने १९ तारीख के अपने पत्र में किया था, भेजने के लिए आपको धन्यवाद।

उल्लिखित वाक्योंका जो अर्थ आपने लगाया है, मेरी रायमें प्रसंगको देखते हुए उनका अर्थ उससे कुछ भिन्न है। मैंने उन वाक्योंका और उनसे पहले आनेवाले वाक्योंका अनुवाद एक मित्रसे करा लिया था। मुझे ऐसा लगता है कि यहाँ श्री खाडिलकर नेताओंकी तर्क-सम्मत स्थितिको स्पष्ट कर रहे हैं। आप देखेंगे कि अन्तिम वाक्य प्रश्नवाचक है। जहाँतक खुद मेरा सम्बन्ध है, सविनय अवज्ञाकी तैयारियोंका मेरे द्वारा नेतृत्व किये जानेका कोई प्रश्न नहीं है। देश सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ करनेके लिए ठीक स्थितिमें है या नहीं, यह प्रश्न ऐसा है जिसपर इस समय, जब मैं विभिन्न प्रान्तोंकी अवस्थाका कहने लायक अध्ययन कर ही नहीं पाया हूँ, कोई मत नहीं दे सकता। किन्तु इतना तो मैं निश्चित मानता हूँ कि जबतक देश सविनय अवज्ञाके लिए तैयार नहीं हो जाता तबतक उसे कोई भी कहने योग्य वस्तु प्राप्त नहीं होगी। इसलिए मैं स्वस्थ हूँ अथवा अस्वस्थ, मेरी रायमें मार्ग बिलकुल स्पष्ट है। बारडोली कार्यक्रमको अमल में लानेसे देश शीघ्रसे-शीघ्र सविनय अवज्ञा के लिए तैयार हो जायेगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत आर॰ एन॰ माण्डलिक
सम्पादक, 'लोकमान्य'
२०७, रस्तीबाई बिल्डिंग,
गिरगाँव, बम्बई—४

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६१२) की फोटो नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१७० से।
  1. गांधीजी ने इससे पहले ही नवाकालका अंक मांगा था; देखिए "पत्र : आर॰ एन॰ माण्डलिकको", २०-३-१९२४।