पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/३८३

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२३२. पत्र : ए॰ डब्ल्यू॰ मैकमिलनको

पोस्ट अन्धेरी
२८ मार्च, १९२४

प्रिय श्री मैकमिलन,

पत्र के लिए आपको अनेक धन्यवाद।

आप फीजी में वहाँके भारतीय निवासियोंकी ओरसे जो उद्योग कर रहे हैं, उसमें मैं आपकी पूरी सफलता चाहता हूँ। उन लोगोंके लिए मेरा सन्देश यही है कि उन्हें अपने-आपको इस तरह तैयार कर लेना चाहिए जिससे वे हर तरहकी कठिनाईका सामना कर सकें।

आप फीजीमें अपने देश बन्धुओंसे निरन्तर विरोध रखकर रहना नहीं चाहते, मैं आपकी इस भावनासे पूरी तरह सहमत हूँ। मेरा निश्चित विश्वास है कि आप अपने देशभाइयोंसे विरोध रखकर भारतीयोंकी सेवा कर भी नहीं सकते। मेरे खयालमें आवश्यकता इस बातकी है कि जो सचाई है, उसे साफ-साफ कहा जाये और चाहे कुछ भी हो, न्यायका आग्रह रखा जाये। इसमें किसीका विरोध करनेकी कोई आवश्यकता भी नहीं पड़ सकती।

हृदयसे आपका,

श्री ए॰ डब्ल्यू॰ मैकमिलन
बनारस छावनी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६२२) से।
 

२३३. पत्र : श्रीनिवास आयंगारको

पोस्ट अन्धेरी
२८ मार्च, १९२४

प्रिय श्री श्रीनिवास आयंगार,

श्री राजगोपालाचारीने मेरे लड़केको[१] लिखा है कि जब उन्होंने आपसे यह कहा कि मुझे आशुलिपिककी सहायताकी जरूरत है तो आपने तुरन्त मुझे बिना कुछ खर्च लिये अपना आशु लिपिक भेजनेका प्रस्ताव किया। कहनेकी आवश्यकता नहीं कि आपके इस प्रस्तावके लिए मैं आपका बहुत कृतज्ञ हूँ। श्री राजगोपालाचारीका पत्र मेरे लड़केको मिला, उससे पहले ही श्री गोलिकेरेको यह मालूम हो गया था कि मुझे

  1. देवदास गांधी।