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सम्पूर्ण गांधी वाङमय
देशके सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हितोंका तकाजा है कि भारत और इंग्लैंड बीच भविष्य में वर्षों तक घनिष्ठ सम्बन्ध जारी रहें. . .। कई राजनीतिज्ञोंका कहना है कि अगर इंग्लैंडके लोग भारतवासियोंको उनके माँगने भरसे स्वराज्य नहीं देते तो दूसरा रास्ता तलवार उठा लेना ही है। किन्तु इस सिद्धान्तके प्रचारक चाहे वे भारतीय हों या अंग्रेज, यह भूल जाते हैं कि तलवारका प्रयोग और साम्राज्यके अन्तर्गत स्वराज्यकी स्थापना—ये दोनों बातें, यदि परस्पर विरोधी नहीं तो, पूर्णतः असंगत अवश्य हैं. . .। ब्रिटिश साम्राज्यके बाहर भारतकी स्वतन्त्रताकी कल्पना अब हमारे लिए बहुत ही घातक परिणामोंकी आशंकासे भरी हुई है और उसका अर्थ लगभग कुऍसे निकलकर खाईमें गिरना होगा।
. . . इंग्लंडसे अपने सारे सम्बन्ध तोड़ लेनेका मतलब है संकटमें फँसना। हमें कदापि इस संकटके मुंहमें प्रवेश नहीं करना चाहिए। यह मार्ग पागल-पनका मार्ग होगा। भविष्यमें बहुत वर्षोंतक मैं नहीं जानता, और नहीं कह सकता, यह अरसा शताब्दियोंका अथवा अनन्त भी हो सकता है—हमारे कल्याणका रास्ता यही है कि हम ब्रिटिश साम्राज्यके अन्तर्गत स्वशासनका उपभोग करते रहें।

आपने अस्पृश्यताके सम्बन्धमें जो कुछ कहा है उसे मैं समझता हूँ और अधिकांसे मैं सहमत भी हूँ। मेरा खयाल है, आपके वक्तव्यसे मेरे मनपर जो छाप पड़ी है, उससे मैंने आपको अवगत करा दिया है।[१] निःसन्देह बीती बातोंके सम्बन्धमें आपने जो कुछ कहा है, उसके सम्बन्धमें मैंने कुछ नहीं कहा। मैं जान-बूझकर इससे बचा हूँ, क्योंकि उससे कोई बात नहीं बनती।

आशा है आप जल्दी ही स्वस्थ हो जायेंगे।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सी॰ विजयराघवाचार्य
आराम
सेलम

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६१६) की फोटो-नकल; तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१६६ से।
  1. तात्पर्य विजयराघवाचार्यकी भेंटसे है।