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२३७. पत्र : शिवदासानीको

पोस्ट अन्धेरी
२८ मार्च, १९२४

प्रिय श्री शिवदासानी,

आपका दिलचस्प पत्र मिला।[१]

मैं विश्वास करता हूँ कि मेरे विचारोंको देखते हुए आप अपनी योजनाके सम्बन्धमें मुझसे कुछ करनेकी आशा नहीं रखेंगे। मेरे सामने ऐसा काम है जिसे तुरन्त करना है, उसमें मुझे अपनी पूरी शक्ति लगानी होगी। मशीनोंके सम्बन्धमें आपका तर्क बिलकुल विश्वासोत्पादक नहीं है। आपने मोटे तौरपर यह जो कहा है कि "मशीनें, मशीनोंका ही स्थान ले सकती हैं" सो इस कथनके मूलमें एक बड़ी मिथ्या धारणा है। आप पूरी प्रक्रियाको बारीकीसे देखें तो आपको मालूम होगा कि बाहरसे आनेवाले मशीनोंके तैयार किये हुए कपड़ेको यहाँसे हटाने के लिए मशीनोंका आयात करना सर्वथा अनावश्यक है। क्या आप यह नहीं समझते कि भारतके एक सुदूरवर्ती गाँवसे रुई मैनचेस्टर भेजने और उसे कपड़े के रूपमें फिर आयात करनेमें जो श्रम और धन लगता है, उसकी बचत हो सकती है, यदि गाँवमें ही उस रुईसे वस्त्र तैयार कर लिया जाये। निश्चय ही आपको यह समझ सकना चाहिए कि संसारकी कोई भी मशीन इन ग्रामीणोंका मुकाबला नहीं कर सकती। इन लोगोंको कामके लिए तत्पर अपने हाथ-पैरोंके अलावा किसी और मशीनकी जरूरत नहीं; हाँ कुछ मामूली से लकड़ीके औजारोंकी जरूरत पड़ती है, जिनको वे खुद बना सकते हैं। मैं चाहूँगा कि आप इसपर अपने दृष्टिकोणसे फिर विचार करें। एक गाँव में मशीन लगानेके खर्चको ७,००,००० से गुणा कीजिए और फिर अपने-आपसे पूछिए कि इतनी पूंजी कौन लगायेगा और उसका क्या लाभ होगा? क्या आप ये सब पेचीदगियाँ उन ग्रामीणोंपर थोपेंगे जो अपनी फुर्सत के समय में अपनी रुईसे भली-भाँति कपड़ा तैयार कर सकते हैं? मुझे आशा है कि आप ऐसा नहीं करेंगे।

हृदयसे आपका,

श्री शिवदासानी, एल॰ सी॰ ई॰, बार-एट-ला
हीराबाद
हैदराबाद (सिन्ध)

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६१७) की फोटो नकल तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५१६७ से।
  1. २२ मार्चके पत्रमें शिवदासानीने गांधीजीके प्रति आदरभाव व्यक्त किया था, परन्तु हाथको बुनी खादी के समर्थन में दिया गया उनका तर्क समझने में असमर्थता व्यक्त की थी। चीनीकी मिल खड़ी करने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई थी और गांधीजीसे जरूरी पूँजी जमा करनेमें सहायता मांगी थी।