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मेरी निराशा


अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने मुझे अधिक मत दिये। लेकिन मैं अच्छी तरह देख सका कि बारडोलीका प्रस्ताव[१] सचमुच बहुत कम लोगोंको पसन्द आया है। मुझे ये मत मेरे कारण मिले, मेरे विचारोंकी सत्यताके कारण नहीं। उनकी क्या कीमत आँकी जा सकती है? जहाँ प्रजाकी सत्ता की स्थापना करनेका प्रयास किया जा रहा हो वहाँ एक व्यक्तिको जयसे क्या लाभ? वहाँ तो सत्य और सिद्धान्तकी जय ही उचित होती है। बहुमतके हृदय और मस्तिष्क में द्वन्द्वयुद्ध चल रहा था। उसका हृदय मेरी ओर जाता था, मस्तिष्क मुझसे सौ योजन दूर जाता था। उससे मैं व्याकुल हुआ और अब भी व्याकुल हूँ।

इस तरह बलात् गाड़ी कबतक चलेगी? मेरी आत्मा साक्षी देती है कि यदि हम मन, वचन और कर्मसे शान्तिवादी हों अर्थात् शान्तिको व्यवहार-धर्म और समयानुकूल धर्म मानते हों, तो भी यह बात हमें पूर्णिमाके चन्द्रमाकी तरह स्पष्ट रूपसे दिखाई देनी चाहिए कि चौरीचौराकी घटना के बाद बारडोली के प्रस्तावोंके[२] अलावा और कोई मार्ग हो ही नहीं सकता। तथापि [अखिल भारतीय] कांग्रेस कमेटीमें बारडोली के प्रस्तावका अनुमोदन किया गया सो कोई प्रस्तावके औचित्यको ध्यानमें रखकर नहीं बल्कि मेरी खातिर किया गया। जिन नाविकोंको स्वयं तो दिशाका कोई भान नहीं होता, लेकिन जो चालकपर विश्वास रखकर नावको खेते जाते हैं वे चालकके मरने अथवा उसमें विश्वास न रह जानेपर नावको डुबा देते हैं। ऐसी नावमें यात्रा करना खतरनाक है। उसी तरह जो लोग बिना सोचे-समझे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रस्तावको पास करते हैं वे कांग्रेस रूपी नावको डुबा देंगे।

मुझे तो यह बात स्पष्ट दिखाई देती है कि यदि हम यह मानते हों कि हमें केवल शान्तिसे ही विजय प्राप्त हो सकती है, तो शान्ति-अशान्ति दोनोंकी मिलावट नहीं चल सकती, यदि मिलावट की गई तो वह [दूध की तरह] फट जायेगी और हमें लाभके स्थानपर हानि होगी। जैसे बारडोलीके आन्दोलनका प्रभाव सारे हिन्दुस्तानपर होता वैसे ही चौरीचौराकी घटनाका प्रभाव भी सारे देशपर होगा ही। यदि हमारा मन स्वस्थ हो तो हमें ऐसा ही लगना चाहिए। हम आकाशमें सूर्य और चन्द्र दोनोंको एक साथ नहीं देख सकते। सर्दी और धूप एक साथ नहीं हो सकती। धूपको छायाके रूपमें दिखानेका ढोंग कितने दिनतक चल सकता है? उत्तर दिशाकी ओर जानेवाले व्यक्तिको यह कहकर कितनी देरतक भरमाया जा सकता है कि वह उत्तर दिशाकी ओर नहीं बल्कि दक्षिण दिशाकी ओर जा रहा है। शान्तिके नामपर अशान्ति हो तो उसे कहाँतक छिपाया जा सकता है?

जिस नीतिको व्यवहारके रूपमें स्वीकार किया हो उसका पालन भी कमसे कम जबतक व्यवहार चलता है तबतक अवश्य किया जाना चाहिए। समयानुकूल नीति भी जबतक चले तबतक पूरी तरहसे चलनी चाहिए। पाँच दिनोंतक उद्यम करनेका

  1. कांग्रेसकी कार्य-समितिको बैठक ११-१२ फरवरीको बारडोलीमें हुई थी। गांधीजीके अनुरोधपर समितिने सामूहिक सविनय अवज्ञाको रद्द करनेका और उसके स्थानपर कताई-बुनाई, शराबबन्दी, सामाजिक सुधार और शैक्षणिक प्रवृत्तियोंका रचनात्मक कार्यक्रम रखनेका निश्चय किया था।
  2. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ ४३२–३५; और खण्ड २२, पृष्ठ १०६–१३ तथा पृष्ठ ३१०–१२।