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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वचन देनेवाले मनुष्यको कमसे-कम पाँच दिनोंतक तो उद्यम करना ही चाहिए। आलस्यका प्रेमी होनेपर भी एक बार उद्यम करनेका वचन देने के बाद वह यह नहीं कह सकता कि उद्यममें श्रद्धा न होनेसे वह पाँच दिन भी उद्यम नहीं कर सकता। पाँच दिन भी उद्यम करनेकी बातपर जिस मनष्यकी श्रद्धा न हो उसके बारेमें हम सब निस्सन्देह यही कहेंगे कि उसको उद्यमी लोगोंकी टोलीसे बाहर ही रखना चाहिए।

भारतीयोंने निश्चय किया है कि शान्तिके बिना भारतका उद्धार असम्भव है, क्योंकि शान्तिके बिना हिन्दुस्तान एक नहीं हो सकता और शान्तिके बिना चरखा नहीं चलाया जा सकता। हिन्दू-मुस्लिम एकता और चरखेके बिना हिन्दुस्तान एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकता। हिन्दू-मुस्लिम एकता हिन्दुस्तानकी जान और चरखा शरीर है। दोनोंका मूल शान्ति है।

वस्तुस्थिति इतनी स्पष्ट होने और 'शान्ति' शब्दका उच्चारण करने के बावजूद हम अपने दिलोंमें अशान्तिको ही पालते रहे हैं, और हमारे दिलोंमें क्रोध भरा हुआ है। 'मुखमें राम बगलमें छुरी' के कायल बगुला भगत क्या स्वर्ग जा सकते हैं?

मेरे अनेक बार चेतावनी देनेके बावजूद बारडोलीका प्रस्ताव भारी बहुमतसे पास हो गया। इससे मैं असमंजसमें पड़ गया हूँ। यदि ये सब मत सोच-समझकर दिये गये हों तो इसका परिणाम अच्छा हो सकता है। इतने मत देनेवाले लोग यदि यह मानते हों कि हमें अब शान्तिकी और चुपचाप काम करनेकी जरूरत है तो हमने अबतक जितना बल अर्जित किया है उससे कहीं अधिक कर सकेंगे।

जान-बूझकर जेल जानेकी पहले जितनी जरूरत थी उतनी ही जरूरत अब कुछ समयके लिए जेल जाना स्थगित रखनेकी है। अत्याचारी राज्यमें मुक्तिका दरवाजा जेल तो हमेशा रहेगी। लेकिन जेलमें जाने के लिए भी कलाकी जरूरत है। चोर और पाखण्डी जेल जाते हैं, किन्तु वे स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं करते। वे तो वहाँ सजा ही भोगते हैं। चित्तमें अशान्ति और मनमें क्रोध लेकर जो जेल जाते हैं वे जेलमें सुखी नहीं रह सकते। उन्हें तो जेल सेवागृह नहीं जान पड़ता। शान्त चित्तसे जेल जानेवाला मनुष्य यही मानता है कि वह जेलमें भी पूर्ण अथवा अधिक सेवा करता है। वह जेलमें स्वस्थ मनसे विचारोंको विकसित करता है, अधिक संयम रखता है, और नियमोंका अधिक पालन करता है। हाथमें जहरका प्याला थामे हुए सुकरातने अपना सर्वोत्तम भाषण दिया था और मरकर अपना और अपने वचनोंका अमरत्व सिद्ध किया था। तिलक महाराजने अपने दो महान् ग्रन्थ जेलमें लिखे थे। उन्होंने जेलमें एक क्षण भी व्यर्थ गँवाया, ऐसा नहीं कहा जा सकता। अब भी जो कैदी[१] जेलमें अपना कार्य कर रहे हैं, वे तो सेवा ही कर रहे हैं।

इस समय जेल जानेका प्रयत्न करना अशान्तिका पोषण करने के बराबर है। इसलिए इस समय जेलसे बाहर रहना हमारा धर्म हो गया है।

हमारे मनमें ऐसी शंका उठ सकती है कि "इससे तो शत्रु हमें कायर मानेगा और हमारी अपकीर्ति होगी"। जब शत्रु हमें कायर माने लेकिन वस्तुतः हम कायर न

  1. वे लोग जो १९२०-२१ के असहयोग आन्दोलन के दौरान जेल गये थे।