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२५०. सन्देश : 'भारती' को

[मार्च १९२४ के अन्तमें][१]

भारतके स्त्री-पुरुषोंके लिए और विशेषकर स्त्रियोंके लिए, मेरे पास एक ही सन्देश है—चरखेका सन्देश। अहिंसात्मक आन्दोलन एक ऐसा आन्दोलन है जो किसी सांसारिक संरक्षकके बिना भी कमजोरसे कमजोर मनुष्योंको अपना सम्मान बनाये रखने की सामर्थ्य देता है। नारीको दुर्बलताकी प्रतिमूर्ति माना गया है। वह शरीरसे दुर्बल भले ही हो, परन्तु आत्मासे वह सशक्त से सशक्त व्यक्तिके समान हो सकती है। चरखा अपने सम्पूर्ण फलितार्थी के साथ—कमसे कम भारतमें तो सशक्त आत्मावाले व्यक्तियोंका ही अस्त्र है। समूची जनता यदि इस अद्भुत चरखेको अपना ले तो ग्रेट ब्रिटेन भारत में अपने शुद्ध स्वार्थमय हितसे वंचित हो जायेगा। केवल तभी भारत और इंग्लैंड के पारस्परिक सम्बन्ध शुद्ध और मुख्यतः निःस्वार्थ तथा इसी कारण विश्वके लिए हितकारी बन सकते हैं। ईश्वर करे भारतकी महिलाएँ हाथ-कताईको अपने दैनिक कर्त्तव्य पालन के रूप में स्वीकार कर लें और हमारे देशके दुर्बलतम शरीरवाले लोगोंकी स्वतन्त्रताके लिए चलाये गये आन्दोलनमें पूरा-पूरा हाथ बँटायें।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६१८) की फोटो नकलसे।
 

२५१. पत्र : के॰ पी॰ केशव मेननको

अन्धेरी
१ अप्रैल [१९२४]

प्रियवर केशव मेनन,

सर्वश्री शिवराम अय्यर और वंचेश्वर अय्यर आपके सत्याग्रहके[२] सिलसिले में यहाँ आये हैं। उन्होंने मुझे बताया है कि जिन सड़कोंके सम्बन्धमें विवाद है, वे जिस मन्दिरको जाती हैं, उसकी निजी सम्पत्ति हैं और वह मन्दिर ऐसे ब्राह्मण न्यासियोंके एकाधिकारमें है जिन्हें प्रवेशको नियन्त्रित करनेका पूरा अधिकार है। ऐसा इन सज्जनों-का दावा है। इसपर मैंने उनसे पूछा कि क्या ये सड़कें केवल ब्राह्मणोंकी निजी

  1. यह संदेश गांधीजी ने सरलादेवी चौधरानीको भेजा था। इसकी निश्चित तारीख तय नहीं की जा सकती। सरलादेवीने मार्च १९२४ के तीसरे सप्ताह में लाहौर से एक पत्र निकालनेका प्रस्ताव रखा था। फोटो-नकलका साधन-सूत्र भी उसी महीनेसे सम्बद्ध एस॰ एन॰ रेकर्डस और अन्य कागजों में है।
  2. वाइकोम सत्याग्रह, जिसका उद्देश्य हरिजनोंको मन्दिरोंमें प्रवेशका और सार्वजनिक सड़कोंके उपयोगका अधिकार दिलाना था; देखिए "पत्र : के॰ पी॰ केशव मेननको", १९-३-१९२४।