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मेरी निराशा

हों, तब हमारी विजयकी घड़ी समीप आती है क्योंकि हमारी तथाकथित कायरता तो हमारा बल है और शत्रुकी झूठी मान्यता उसे भुलावेमें डालती है। जो सिर्फ ईश्वरकी सहायताकी अपेक्षा करता है उसकी अपकीर्ति हो ही कैसे सकती है? अपकीर्ति तो तभी हो सकती है जब हम तनिक भी अशोभन कार्य करें। हमें जेलके भयसे जेलका त्याग नहीं करना चाहिए। लेकिन जेल जाने में नासमझी होने, घमण्ड हो जाने और अशान्ति होने का भय हो तो हमें उसका त्याग करना चाहिए। हम शत्रुको प्रसन्न करने के लिए नहीं वरन् अपनी आत्माकी खुशीके लिए जेल जाना बन्द करें। जेल जानेके विचारका त्याग करके क्या हमें फाँसीपर चढ़नेकी तैयारी नहीं करनी चाहिए?

शत्रु जो चाहे वह हम न करें। इस समय शत्रु यह चाहता है कि हम अधिक क्रोध करें। वह हमें चिढ़ा रहा है। वह हमें मुक्का दिखा रहा है, हमें अपनी लाल-पीली आँखें दिखा रहा है, हमें घुड़की दे रहा है और [मानों क्रुद्ध सिंहकी तरह] अपने अयाल फड़फड़ा रहा है। यदि हम उसके चिढ़ानेसे चिढ़ते हैं तो गोया हम हारते हैं। उसके हथियार मद, दम्भ, अशिष्टता और धमकी हैं। हमारे हथियार शान्ति और नम्रता हैं। शत्रु हमें भले ही डरा हुआ कहे अथवा माने, यह हमको ठीक लग सकता है, लेकिन हम प्रतिज्ञा-भंजक सिद्ध हों यह उचित नहीं लगता।

इसीसे तो मैंने निर्णय कर लिया है कि हम फिलहाल कैदियोंको भूल जायें, यह हमारा पहला प्रायश्चित्त है। हमने भूलें की हैं इसलिए हम कैदियोंको रिहा करवाने की अपनी शक्ति खो बैठे हैं और कैदी सरकारकी मेहरबानी से नहीं छूटना चाहते। यदि सरकार के रिहा करनेपर वे रिहा होते हैं तो इससे वे खिन्न होंगे और हमें भी लज्जित होना पड़ेगा। हम उन्हें जेल जाकर ही रिहा करवा सकते हैं, ऐसा कोई अनिवार्य नियम नहीं है। हम अपने सत्यबलसे और अपनी प्रतिज्ञाका पालन करके उन्हें छुड़वा सकते हैं। हम अपना बल जितना जेल जाकर बता सकते हैं उतना ही रचनात्मक कार्य करके भी बता सकते हैं। बल हमारे किसी विशेष कार्यमें नहीं है वरन् हमारी वृत्तिमें है। शर्मके कारण जेल जानेवाला मनुष्य बलवान नहीं है लेकिन जो मनुष्य यह जानते हुए भी कि वह कायर माना जायेगा, जेल जानेसे इनकार कर देता है वह बलवान हो सकता है। बल सत्य कार्य करनेमें है।

यदि हिन्दुस्तान अथवा गुजरात एक मासमें रचनात्मक कार्यको पूरा कर दिखाये तो हम एक मासमें ही कैदियोंको छुड़वा सकते हैं। यदि बहुत सारे प्रामाणिक, समझदार और प्रसिद्ध स्वयंसेवक मिल जायें तो एक मासमें रचनात्मक कार्यको पूरा करना कोई मुश्किल बात नहीं है।

१. हर स्त्री-पुरुषको कांग्रेसकी प्रतिज्ञा लेनी चाहिए और चार आने देकर कांग्रेस के दफ्तर में अपना नाम दर्ज कराना चाहिए।

२. तिलक स्वराज्य कोषके[१] लिए चन्दा इकट्ठा करना चाहिए।

  1. बाल गंगाधर तिलकको स्मृतिमें स्थापित, जिनकी मृत्यु १९२० में हुई थी।