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"यंग इंडिया" के नये और पुराने पाठकोंसे

पर खड़ा हो या उसे बन्द कर दिया जाये। यह सम्भव है कि यदि 'यंग इंडिया' के पुराने पाठकोंके दिलोंमें मेरे प्रति प्रेम बना हुआ है तो 'यंग इंडिया' जल्दी ही स्वावलम्बी हो जाये। किन्तु मैंने इस घाटेकी चर्चा जनताको केवल वास्तविक स्थिति बताने के लिए ही नहीं की, एक महत्त्वपूर्ण घोषणा करनेकी भूमिका के रूपमें भी की है।

जब श्री बैंकर और श्री याज्ञिकने यह सुझाव दिया था कि गुजराती 'नवजीवन' को जो तब मासिक निकलता था, साप्ताहिक कर दिया जाये और उसका सम्पादन मैं करूँ और जब मैंने यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ली थी तब मैंने यह कहा था कि यदि इसमें घाटा होगा तो यह बन्द कर दिया जायेगा और इसमें लाभ होगा तो उसका उपयोग किसी सार्वजनिक कार्यके लिए किया जायेगा।[१] 'नवजीवन' से जल्दी ही लाभ होने लगा, किन्तु सेठ जमनालालजी के सुझावपर 'हिन्दी नवजीवन' का प्रकाशन आरम्भ कर दिया गया।[२] यह भी जैसे ही स्वावलम्बी हुआ, में गिरफ्तार कर लिया गया और उसके बाद उसकी ग्राहक संख्या लगातार घटती गई। अब यह फिर घाटा उठाकर निकाला जा रहा है। किन्तु इस हानिके बावजूद 'नवजीवन' और अन्य प्रकाशनोंकी ग्राहक संख्या अधिक होनेसे प्रबन्धकोंने सार्वजनिक कार्य के लिए पचास हजार रुपये दिये हैं। स्वामी आनन्दानन्दने, जो नवजीवन प्रेसकी व्यवस्था कर रहे हैं, इस रुपयेको किसी काम में लगानेका प्रश्न बिलकुल मेरे ऊपर छोड़ दिया है और चूंकि इसके उपयोगका मुझे इससे अच्छा दूसरा कोई तरीका नहीं जंचता, इसलिए मैं इसे प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी-की मार्फत गुजरातमें, जिसमें काठियावाड़ भी आ जाता है, चरखे और खादीका प्रचार करने में लगाना चाहता हूँ। इसमें पहले गरीब स्त्रियों और दलित वर्गोंका ध्यान रखा जायेगा। अपने कुछ साथी कार्यकर्त्ताओंके विचारसे जनताको यह सूचित करना मेरा फर्ज है कि उनमें से कुछ लोग यह काम केवल लोकसेवाके भावसे कर रहे हैं। जो कार्यकर्त्ता कुछ लेते भी हैं वे उतना ही लेते हैं जितने से उनकी जरूरतें-भर पूरी हो जायें। ऐसे कामका नतीजा जनताके सामने है। आज सौभाग्यसे मुझे जैसे कार्यकुशल व्यवस्थापक प्राप्त हैं, यदि उसी तरह छोटेसे लेकर बड़ेतक निस्वार्थी कार्यकर्त्ता मिल जायें तो मुझे विश्वास है कि और भी ज्यादा करके दिखाना सम्भव होगा।

मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि यदि मेरे जेल जाने के पूर्व 'यंग इंडिया' से जैसे लाभ होता था वैसे फिर लाभ होने लग जायेगा तो वह लाभ सार्वदेशिक कार्य के लिए वितरित कर दिया जायेगा और यदि 'हिन्दी नवजीवन' से मुनाफा हुआ तो वह हिन्दी के प्रचारमें लगा दिया जायेगा।

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-४-१९२४
  1. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ ३८०-८१।
  2. १९ अगस्त, १९२१ को।