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२५५. टिप्पणियाँ
धन्यवाद

'यंग इंडिया' के जीवन में संकटपूर्ण स्थिति आनेपर जिन सम्पादकोंने एकके बाद एक उसके सम्पादनका भार सँभाला, उनको मैं यदि सार्वजनिक रूपसे धन्यवाद न दूँ तो यह मेरी कृतघ्नता होगी। शुएब कुरैशीकी चुटीली शैली सरकार के लिए असह्य सिद्ध हुई। सरकारने भी उनको दम नहीं लेने दिया। उनके बाद राजगोपालाचारी आये। उनके लेख विद्वत्तापूर्ण थे और उनसे सत्याग्रह सम्बन्धी गहन सत्योंकी अद्भुत पकड़ जाहिर होती थी। जॉर्ज जोसेफकी प्रखर शैली पाठकोंको अब भी याद होगी। इन लोगोंने समयपर 'यंग इंडिया' को जो सहायता की उसके लिए इन मित्रोंको अत्यन्त हार्दिक धन्यवाद देना मेरा प्रथम कर्त्तव्य है। प्रबन्ध विभागके कर्मचारियोंने भी राष्ट्रीय कार्य के प्रति उत्साह के कारण कम उद्योगशीलता नहीं दिखाई।

खिलाफत

लोग मुझसे कह रहे हैं कि मैं खिलाफत के सम्बन्धमें अपनी राय जाहिर करूँ। मेरी कोई राय नहीं है। मुझ जैसे एक बाहरी आदमी के लिए अपने विचार मुसलमान-भाइयोंपर लादना धृष्टता होगी। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसे स्वयं मुसलमानों-को ही तय करना चाहिए। देशके तमाम गैर-मुस्लिम जो कुछ कर सकते हैं वह इतना ही है कि वे इस दुःख-दर्द में उनके साथ अपनी हमदर्दीका उन्हें यकीन दिला दें। खिलाफतका अस्तित्व उनके मजहबका एक मुख्य अंग है। हर शख्स जिसे अपना मजहब प्यारा है दूसरे मजहबवालोंके साथ सच्ची हमदर्दी जाहिर किये बिना नहीं रह सकता। हरएक ऐसे हिन्दुकी सहानुभूति, जो मुसलमानोंकी मित्रताको एक कीमती चीज मानता है, इस महादुःखमें अवश्य ही मुसलमानोंके साथ रहेगी। उस समयकी अपेक्षा जब खिलाफतपर बाहरसे हमला किया गया था, यह समय उनके लिए अधिक चिन्ताका है। चूँकि अब यह खतरा उनके घर ही में पैदा है और मुख्तलिफ फिरकोंके लोग अपने-अपने खयालातों को लेकर झगड़ रहे हैं इसलिए जो लोग इस समस्याको ऐसे तरीकेसे हल करना चाहते हैं जो उनके मजहबके गहरे और सच्चे उसूलके मुआफिक हो और जिसे तमाम फिरके मंजूर कर सकें, उनको इसमें अपना समस्त बुद्धि-बल और युक्ति-बल लगाने की जरूरत पड़ेगी। मुझे तो साफ नजर आ रहा है कि जहाँतक इन्सान के वशकी बात है न सिर्फ खिलाफतका, बल्कि इस्लामका भी भविष्य हिन्दुस्तान के मुसलमानोंपर निर्भर करता है। यह काम उन्हींको करना है और यह उनका ही विशेष अधिकार है। परमात्मा उन्हें सही रास्ता दिखाये और उसपर चलनेकी शक्ति दे।