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'बुराईका व्यापार'

'बुराईका व्यापार' शब्दोंका प्रयोग श्री सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजने अफीमके व्यापारके सम्बन्ध में किया है। इस सम्बन्धमें पाठक अन्यत्र उनका लिखा एक ज्ञानवर्धक लेख[१] पढ़ेंगे। मुझे यह लेख देते समय उन्होंने कहा था कि "आपने अफीमके व्यापारको जो कुछ कहा है मैं उससे भी आगे बढ़ा हूँ। मैंने इसे 'बुराईका संगठन' कहा था। श्री एन्ड्रयूज इसे 'बुराईका व्यापार' कहते हैं। मैं श्री एन्ड्रयूज-जैसे विद्वान्से, जो शब्द गढ़ने में अधिक कुशल हैं, बहस कैसे करता। मैं पाठकोंसे श्री एन्ड्रयूजके लेखको ध्यानपूर्वक पढ़नेका अनुरोध करता हूँ। श्री एन्ड्रयूजने अफीमके इस व्यापारकी भर्त्सना तथ्योंके आधारपर की है और उन्होंने उन भयंकर तथ्योंका भली-भांति अनुशीलन भी किया है। पाठक यह न भूलें कि ब्रिटिश सिंगापुरमें भेजी जानेवाली अफीम ब्रिटिश भारतमें पैदा होती है और यहींसे भेजी जाती है। पाठक यह भी न भूलें कि सरकारी स्कूलोंमें हमारे बच्चोंकी शिक्षाका खर्च भी इसी संगठित और बुराईके व्यापारसे निकलता है।

अवकाशका समय

इस पत्र में अन्यत्र श्री राजगोपालाचारीकी छात्रोंसे अपील[२] छापी गई है। यह अपील राष्ट्रीय स्कूलों में ही नहीं बल्कि सरकारी स्कूलोंमें भी समस्त छात्रों द्वारा बहुत ही ध्यानपूर्वक पढ़ी जानी चाहिए। अन्य लोगोंकी भाँति छात्रों द्वारा किया गया असहयोग भी हिंसारंजित था। राष्ट्रीय शालाओं और सरकारी स्कूलोंके लड़कों और लड़कियोंके बीच जो खाई है, उसका यही कारण है। वास्तव में उनके बीच ऐसी कोई खाई नहीं होनी चाहिए। यदि श्री राजगोपालाचारीके सुझावपर अमल किया जायेगा तो उससे दो उद्देश्य सिद्ध होंगे। इसपर अमल करनेसे एक तो यह खाई पट जायेगी और दूसरे छुट्टियोंके दिनोंमें छात्रोंको जो अवकाश मिलता है उसका उपयोग राष्ट्रके लाभके लिए हो सकेगा। दोनोंके बीच मैत्रीका यह प्रयत्न असहयोगी छात्रोंकी ओरसे किया जाना चाहिए। इस कार्य में उनको अपने सिद्धान्तका कोई त्याग नहीं करना पड़ेगा बल्कि वस्तुतः अपने इस व्यवहारसे वे उसके एक अहिंसात्मक और इसलिए महत्त्वपूर्ण भागको सशक्त बनायेंगे। यदि उनके इस सदाशयतापूर्ण प्रयत्नको अस्वीकार कर दिया जाये तो उनको इससे निराश नहीं होना चाहिए। यदि यह काम भाईचारेकी भावना से प्रेरित होकर किया जाता है तो सफलता अवश्यम्भावी है।

एक अनुकरणीय उदाहरण

धारवाड़ के राष्ट्रीय स्कूलके लड़कोंने मुझे अपने काते हुए सूतका एक पार्सल भेजा है और लिखा है कि यह सूत सात दिन और सात रातकी अखण्ड कताईका फल है। मुझे सैसून अस्पतालमें मालूम हुआ था कि चिचवड़की संस्थामें भी डेढ़ महीनेतक कई

  1. यह यंग इंडिया, ३-४-१९२४ में छपा था।
  2. उन्होंने "छुट्टीका विचार" शीर्षक अपने लेखमें छात्रोंको अपना अवकाशका समय खादीके कार्यमें लगानेका सुझाव दिया था।