पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/४०७

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कोई भेद न दिखाई दे। परन्तु श्री मजलीके लिए यह फर्क एक बड़ा फर्क है। आज हजारों हिन्दुस्तानी सूत कातना अपना एक पवित्र कर्त्तव्य मानते हैं और इसीलिए सूत कातनेमें वे बहुत सुख अनुभव करते हैं। परन्तु सूतको बटना उनके लिए वह महत्त्व नहीं रखता। ऐसी कमजोरीकी हालतमें श्री मजलीकी नजरमें सूतको बटना एक असह्य कष्ट हो गया; मगर सूत कातना उनकी व्यथित आत्माके लिए शान्तिदायी औषधका काम देता और उन्हें अपनी बीमारीकी सुध भुला देता। इसके सिवा जिसे बटनेका अभ्यास है वह एक पौण्ड सूत आसानीसे बट सकता है; परन्तु श्री मजली जैसा रोगी आदमी चौथाई पौण्ड सूत भी मुश्किलसे बट सकेगा। मैं भली-भांति जानता हूँ कि सूत बटने का क्या अर्थ है। और चूँकि खुद मुझे शरीर श्रम पसन्द है इसलिए पाठक मेरे इस कथनमें जरा भी अत्युक्ति न मानें कि श्री मजली अपने दुबले-पतले शरीरपर अनुचित बोझ डाले बिना पाव पौण्ड सूत भी कठिनाईसे ही बट सकते हैं। २४ घंटेतक उन्हें तनहाई में बन्द कर रखना और सिर्फ १५ मिनटके लिए खुली जगहमें घूमनेके लिए छोड़ना यन्त्रणा ही थी और भातकी जगह ज्वारकी रोटी देना उनकी हालतको और भी खराब करनेका अचूक तरीका था। किन्तु यह पत्र जेलके हाकिमोंकी शिकायत करनेके उद्देश्य-से प्रकाशित नहीं किया जा रहा है, क्योंकि बहुधा ऐसी घटनाएँ यों ही हो जाती हैं—उनमें कैदियोंको तकलीफ पहुँचानेका कोई खास इरादा नहीं होता। जो चीज बुरी है वह है जेल-शासनकी सम्पूर्ण प्रणाली। मैं उसे पहले ही हृदयहीन कह चुका हूँ। उससे भी बुरी बात है सरकारका सचाईको न मानना या तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना। सरकारी उत्तरका खण्डन भेजते हुए श्री मजलीने खेद प्रकट किया है। परन्तु इसकी कोई आवश्यकता नहीं। आखिर वे कर्नाटकके एक मुख्य कार्यकर्त्ता हैं। क्या ही अच्छा हो यदि उनकी तरह हममें से हरएक सच्चे दिलसे अपने मनमें कहे—'मैं किसी लायक नहीं हूँ।' उस अवस्था में हम सब सेवक और कार्यकर्त्ता रह जायेंगे और हमारे अन्दर केवल एक स्पर्धा रहेगी—अधिकसे-अधिक काम करना, सो भी ख्याति और प्रधानताकी चाह रखे बिना। उस अवस्था में स्वराज्यकी प्राप्ति और उसका संचालन सुगम हो सकेंगे। बेशुमार दिक्कतें तो तब पेश आती हैं जब हर आदमी नेता बनना और सलाह देना चाहता है, और काम करना कोई नहीं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-४-१९२४

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