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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


३. राष्ट्रीय स्कूल चलाने चाहिए।

४. शराब पीनेवालोंके घरोंमें जाना चाहिए।

५. विदेशी कपड़ोंका उपयोग करनेवालोंको खादी पहनने के लिए समझाना चाहिए और घर-घर चरखेका प्रचार करना चाहिए।

६. अन्त्यज-वर्गकी मदद करनी चाहिए।

७. पंचायतोंकी स्थापना करनी चाहिए।

८. बिना भेदभाव के रोगी अथवा घायलकी सेवा करनी चाहिए चाहे वह गोरा हो अथवा काला।

इन कार्यों में एक भी कार्य ऐसा नहीं है जिसको करनेके लिए युगोंकी जरूरत हो। यदि लोकमत हमारी प्रवृत्तिके विरुद्ध हो तो ऐसी जरूरत हो सकती है। लेकिन हम इस समय तो यह दावा करते हैं कि लोकमत हमारे साथ है। यदि लोकमत हमारे साथ हो और हमारे पास अच्छे कार्यकर्त्ता हों तो उपर्युक्त कार्यों में ऐसा कौनसा कार्य है जिसमें हम तुरन्त सफल नहीं हो सकते?

मेरे विचारसे तो इससे लोगोंकी परीक्षा भी हो जाती है और यदि वे सचमुच शान्तिपूर्वक विजय प्राप्त करना चाहते होंगे तो वे उपर्युक्त कार्योंको उत्साहपूर्वक करेंगे। किन्तु यदि वे सिर्फ अशान्ति ही चाहते होंगे तो वे रचनात्मक कार्यमें अवश्य हमारा विरोध करेंगे और जब हम सविनय अवज्ञा शुरू करेंगे तब वे उसकी आड़में कानूनका अविनय भंग करनेके लिए तैयार हो जायेंगे। हमारे सामने यह एक सबसे बड़ा खतरा आ खड़ा हुआ है। इसलिए जो शान्तिपूर्ण प्रवृत्तियाँ चलाना चाहते हैं उनके लिए यही उचित है कि वे दृढ़तापूर्वक अपने मार्गका अनुसरण करें। इस मार्गपर चलते हुए भले ही वे मुट्ठी भर रह जायें, भले ही उन्हें अपमान सहना पड़े और उनकी प्रतिष्ठा चली जाये। ऐसा हो तभी वे अपना कार्य निर्भय होकर चला सकते हैं और जो भी कदम उठाना हो दृढ़तापूर्वक उठा सकते हैं। इस समय तो जब वे सविनय अवज्ञा जैसा उग्र कार्य हाथमें लेना चाहते हैं तब उनके रास्तेमें अनेक विघ्न आ पड़ते हैं।

मेरा मार्ग स्पष्ट है। मैं देखता हूँ कि मेरे नामका दुरुपयोग किया जा रहा है। मेरे नामपर चौरीचौरामें खून हुआ। मैं सविनय अवज्ञाकी बात करता हूँ तो सुननेवाले मेरे 'सविनय' शब्दको छोड़कर केवल 'अवज्ञा' शब्दको ही ग्रहण करते हैं। सविनय अवज्ञा पदमें अविच्छिन्न समास समझना चाहिए। रसायन शास्त्रमें दो प्रकारके मिश्रण माने जाते हैं। एक सामान्य मिश्रण जिसमें सब वस्तुएँ अपना-अपना गुण कायम रखती हैं। दूसरा ऐसा मिश्रण है जिससे एक तीसरी ही वस्तु पैदा होती है और उसका गुण दोनों में से किसी भी मूल वस्तुके गुणसे नहीं मिलता। सविनय अवज्ञा भी एक ऐसा ही रासायनिक मिश्रण है। उसमें 'अवज्ञा' का कोई भी बुरा परिणाम नहीं होता और उसमें हम केवल विनयसे उत्पन्न होनेवाले परिणामोंको नहीं देखते। विनयके साथ बहुधा हम दुर्बलता देखते हैं, 'अवज्ञा' के साथ हम उद्धतता और असत्य आदि देखते हैं। किन्तु 'सविनय अवज्ञा' में तो केवल दोषहीनता और निर्भयता ही होनी चाहिए। जबतक ऐसे