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२५७. धीरज रखें

कुछ लोगोंने पत्र लिखकर कौंसिल-प्रवेश[१] और हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नके सम्बन्धमें मेरे विचार जानने की उत्सुकता प्रकट की है। परन्तु कुछ अन्य लोगोंने उतना ही जोर इस बातपर दिया है कि मैं जल्दीमें कोई बात न कहूँ। मैं खुद इन दोनों सवालोंपर अपनी राय जाहिर करनेके लिए बहुत ज्यादा उत्सुक हूँ, लेकिन मैं यथा-सम्भव कोई गलत बात नहीं कहना चाहता। जो लोग[२] मुझसे इन विषयोंमें सहमत नहीं है, उनके प्रति मेरा कुछ कर्त्तव्य है। वे मेरे महत्वपूर्ण सहयोगी हैं। वे अपने देशसे उतना ही प्रेम करते हैं, जितने प्रेमका दावा मैं करता हूँ। उनमें से कुछ लोगोंने अभी-अभी ऐसी कुरवानियाँ की हैं जैसी कुरबानियोंका दावा मैं नहीं कर सकता। मेरी अपेक्षा उन्हें देशकी हालतका आँखों देखा तजुरबा भी अधिक है। इसलिए उनकी स्थिति और योग्यताको देखते हुए उनकी रायोंका पूरा आदर और उनपर पूरी तरह विचार किया जाना चाहिए। इन सबसे बढ़कर बात यह है कि कोई अविचारपूर्ण राय देकर मेरा उन्हें परेशानी में डालना उचित नहीं है। उनका काम एक श्रेयहीन काम है। उन्होंने जो भी प्रस्ताव किया सरकारने उसे अस्वीकार कर दिया। जिन बातोंको मान लेनेमें उसका कुछ भी नुकसान नहीं था जैसे श्री हॉर्निमैनपर से प्रतिबन्ध हटाना और मौलाना हसरत मोहानीको छोड़ना, इन्हें भी उसने नहीं माना और वह संग्रामशील मनःस्थितिमें ही तनी खड़ी रही। ऐसी हालत में मेरे लिए बिना विचार किये कोई ऐसी बात कह देना नामुनासिब होगा जिससे स्वराज्यवादियोंकी उन योजनाओं में बाधा पहुँचे जिन्हें वे संकट के समय अमल में लाना चाहते हों। मैं हालात को और उनके नजरियेको समझने की कोशिश कर रहा हूँ। इस विषय में धीरज रखनेसे कुछ नुकसान नहीं हो सकता। मुमकिन है जल्दबाजी में कोई अनावश्यक हानि हो जाये।

यही बात हिन्दू-मुसलमानोंके सवाल के विषयमें और भी ज्यादा जोर देकर कही जा सकती है। यह एक ऐसी समस्या है जिसको बड़ी सावधानी और एहतियात से हल करने की जरूरत है। हरएक विचारकी छान-बीन करनी होगी। हरएक शब्दको तौलना होगा। जल्दबाजी में मुँहसे निकले निन्दा या स्तुतिके एक ही शब्दसे आग भड़क उठना सम्भव है। इसलिए अगरचे इस सवालपर मेरे विचार पक्के हो चुके हैं और मैं उन्हें प्रकट करनेके लिए बहुत अधिक उत्सुक हूँ, फिर भी अभी मुझे चुप रहना चाहिए। क्या हिन्दू और क्या मुसलमान दोनों जातियोंके अग्रणी सज्जन मुझसे कह रहे हैं कि हालातको पूरा-पूरा सोचे-समझे बिना मैं कोई राय न दूँ। मुझे एक खत मिला है। इसमें तो यहाँतक कहा गया है कि जबतक मैं खुद घूम-फिरकर

  1. देखिए "कौन्सिल प्रवेशके सम्बन्ध में विचार", ११-४-१९२४ के पूर्व और इसके बादवाला शीर्षक।
  2. स्वराज्यवादी लोग।