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२८३. पत्र : डाक्टर मु॰ अ॰ अन्सारीको

पोस्ट अन्धेरी
५ अप्रैल, १९२४

प्रिय डाक्टर अन्सारी,

आपका देवदास के नाम दर्दभरा पत्र मैंने पढ़ लिया है।

मैं मुहम्मद अलीको पहले ही इस बातका आश्वासन दे चुका हूँ कि जबतक मेरी उनकी मुलाकात न हो ले तबतक मैं कोई भी वक्तव्य नहीं दूँगा। लोग लगातार मुझसे कोई-न-कोई वक्तव्य देने को कह रहे हैं और इसके बावजूद मैंने अपने आश्वासनको किस तरह निभाया है, वह आप देख सकेंगे। मैं स्वयं इस बातके लिए उत्सुक हूँ कि हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नके बारेमें अपने विचार व्यक्त कर दूँ; मैं वक्तव्य प्रकाशित नहीं कर रहा हूँ सो केवल इसीलिए कि मुहम्मद अली तथा पण्डित मालवीय चाहते हैं कि मैं अभी इसे स्थगित रखूँ। मैंने इसी प्रश्नपर पण्डित मालवीय के साथ कल काफी देर तक बातचीत की थी। परन्तु आप यह नहीं चाहते कि मैं इन बातोंके बारेमें-तिब्बिया कालेजकी घटनाके बारेमें-मौन रहूँ। मैं उसके सम्बन्धमें तथा मुहम्मद अलीके खिलाफ लगाये गये आरोपके सम्बन्धमें अपने विचार व्यक्त करनेकी इच्छा जरूर रखता हूँ। उन्होंने स्वामी श्रद्धानन्दको जो उत्तर भेजा है वह मेरे पास मौजूद नहीं है। यद्यपि मैं देशी भाषाओंके समाचार-पत्रों में जो कुछ लिखा जा रहा है उससे पूरी तरह अवगत रहनेकी चेष्टा कर रहा हूँ, परन्तु यह मुझ अकेले के बसकी बात नहीं है। अगर आप हिन्दुओं तथा मुसलमानों के समाचार-पत्रोंमें प्रकाशित चुनी हुई खबरोंकी कतरनें मेरे पास भेजते रहने की कृपा करें तो मैं उनके सम्बन्धमें यथासम्भव पूर्ण दृढ़ताके साथ कार्रवाई करना चाहूँगा। इस आम सवालके बारेमें अभी इतना ही।

ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता है जिस दिन मैं अली-भाइयों तथा उनके दुःखके बारे में न सोचता होऊँ। खिलाफतका प्रश्न प्रत्येक मुसलमानको प्रिय है। परन्तु अली-भाई तो खिलाफत की शान और इज्जतको कायम रखने के लिए अपना जीवन हार चुके हैं। इसलिए मैं समझ सकता हूँ कि टर्कीकी विधानसभाके निर्णयसे उनके दिलको कितना भारी आघात पहुँचा होगा। अमीनाकी मृत्यु तथा शौकत अलीकी गम्भीर बीमारीने दुःखका प्याला लबालब भर दिया है। मेरी तीव्र इच्छा है कि शौकत अलीकी सेवा-शुश्रूषा करने और उन्हें फिर पहले जैसा स्वस्थ देखनेके लिए मैं आपके पास होता। वे रोग-शय्यापर लाचार अवस्था में पड़े हुए हैं, यह कल्पना भी बहुत कठिन है। ईश्वर करे वे शीघ्र स्वस्थ हो जायें। कितना अच्छा होता कि आपके वहाँ पहुँचनेपर मैं उनसे मिलने के लिए बम्बई आ जाता। परन्तु मुझे इसकी कोशिश नहीं करनी चाहिए। एक बार इस प्रकारकी यात्रा कोई कठिन बात नहीं है; परन्तु आप मेरे तौर-तरीके जानते ही हैं। यदि मैं अपनी ही मर्जी से अपने ऊपर लगाये गये प्रतिबन्धको एक बार तोड़ देता हूँ