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पत्र: पी॰ ए॰ नारियलवालाको

तो फिर बार-बार उसे तोड़ना होगा। और तब तो मैं कहींका न रहूँगा। इस विश्रामस्थल में भी मुझे विश्राम नहीं मिलता। दर्शकोंकी भीड़ मुझे अकेला नहीं छोड़ती। आजसे मैं लगभग प्रतिदिन कुछ घंटोंका मौनव्रत ले रहा हूँ ताकि मुझे शान्तिकी कुछ घड़ियाँ मिल जायें और साथ ही आनेवाले पत्रोंका जो ढेर बराबर बढ़ता जा रहा है, उसे भी निपटा सकूँ। मैं सोमवारको तो मौन रखता ही हूँ, अब बुधवारको भी रखा करूँगा ताकि 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' के सम्पादन कार्यको ठीक तरह निभा सकूँ।

शौकत अली अपने स्वास्थ्यकी वर्तमान दशामें जुहू आयें—ऐसी कल्पना तक मेरे मनमें नहीं आ सकती; अतः आप उन्हें माथेरान ले जायें। अवश्य ही जब कभी आप एक दिनका अवकाश निकाल सकें, तब आप जरूर आ जाइए। शौकत अली मुझसे जो-कुछ भी कहना चाहते हैं वह सब मुहम्मद अलीसे सुन लूँगा। फिलहाल तो उससे काम चल ही जायेगा। अब रही मेरी बात। वास्तवमें अब बहुत कुछ जानना भी नहीं है। हाँ, इतना जरूर है कि आपके, अली-बन्धुओंके, तथा उन चन्द लोगोंके जिनके विचारोंकी मैं कद्र करता हूँ, ख्यालात जरूर जानना चाहूँगा। मुझे अब क्या करना है इसके बारेमें मेरे विचार लगभग अन्तिम रूप ले चुके हैं। मैं तो अपना बोझ उतार फेंकनेके लिए अधीर हो रहा हूँ।

आपको, अली-भाइयों तथा अन्य सब मित्रोंको मेरा स्नेहाभिवादन। बेगम साहिबासे मेरा सलाम कहनेकी मेहरबानी कीजिएगा।

हृदयसे आपका,

डा॰ मु॰ अ॰ अन्सारी
१, दरियागंज
दिल्ली

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६७४) की फोटो-नकलसे।
 

२८४. पत्र : पी॰ ए॰ नारियलवालाको

पोस्ट अन्धेरी
५ अप्रैल, १९२४

प्रिय श्री नारियलवाला,

आपका पत्र और उसके साथ दस रुपये का नोट भी मिला, धन्यवाद।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपने इस कथनपर विश्वास नहीं किया कि मैं खद्दर न पहननेवालोंको कम प्यार करूँगा। मुझे यकीन है कि मेरा कोई भी सहयोगी किसीसे भी ऐसी कोई बात नहीं कहेगा, परन्तु पूनामें एक ऐसा व्यक्ति था जो अपने आपको स्वयंसेवक बताता था। उसीने आपसे यह गुस्ताखी की होगी।

अब रही खद्दर पहनने की बात; तो उसके साथ आप सभी उच्च सद्गुणोंको क्यों जोड़ते हैं? निश्चय ही तब तो खद्दर धारण करनेका अधिकारी शायद ही कोई