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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निकले। खद्दर पहनने न पहननेका आधार खद्दरके अपने गुण-दोष ही होने चाहिए; फिर दृष्टिकोण चाहे राजनैतिक हो, चाहे आर्थिक। दरअसल तो खद्दरका मुख्य पहलू आर्थिक है, राजनैतिक पहलू तो उसका एक परिणाम-भर है। मैं दुष्टसे दुष्ट व्यक्ति तकसे यह कहने में संकोच न करूँगा कि आप विलायती कपड़ेके या भारतीय मिलोंमें तैयार किये गये कपड़े के स्थानपर खद्दर पहना कीजिए, क्योंकि इस तरह रुई धुनने, सूत कातने और कपड़ा बुननेमें जो रुपया हम व्यय करते हैं वह सब हमारे गरीब भाई-बहनोंको मिलता है। इसलिए मैं यही चाहूँगा कि आप खद्दर पहननेका यह मतलब न लगायें कि खद्दर पहननेवाला व्यक्ति सद्गुणोंसे विभूषित हो जाता है; लेकिन मुझे इसमें भी कोई शक नहीं है कि खदर पहनने के फलस्वरूप आप अपनी प्रकृतिमें उन सद्गुणोंको अधिक अच्छी तरह विकसित कर सकेंगे।

हृदयसे आपका,

श्री पी॰ ए॰ नारियलवाला
रोज ली, एल्टामॉन्ट रोड
खम्बाला हिल
बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६७५) से।
 

२८५. पत्र : सर दिनशा माणेकजी पेटिटको

पोस्ट अन्धेरी
५ अप्रैल, १९२४

प्रिय सर दिनशा पेटिट,

आपका ३१ मार्चका पत्र मिला, धन्यवाद। श्रीमती सोराबजीके खिलाफ किये गये अपने निर्णयके[१] पक्ष में आपने जो कारण बतलाये हैं, वे मेरी समझमें आ गये हैं।

आपने कृपापूर्वक मेरे स्वास्थ्य के बारेमें पूछा उसके लिए मैं आपका आभार मानता हूँ। मेरा स्वास्थ्य धीमी गतिसे परन्तु निरन्तर सुधर रहा है।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

सर दिनशा माणेकजी पेटिट
४१, निकोल रोड
बैलार्ड एस्टेट
बम्बई

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ८६७६) की फोटो-नकलसे।

  1. गांधीजीने श्री पेटिटसे श्रीमती सोराबजीकी सहायता करनेका अनुरोध किया था। देखिए "पत्र : सर दिनशा माणेकजी पेटिटको," २७-३-२४।