पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/४३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२८६. पत्र : जी॰ बी॰ तलवलकरको

पोस्ट अन्धेरी
५ अप्रैल, १९२४

प्रिय डाक्टर तलवलकर,

आपका पत्र मिला, धन्यवाद।

आपको पत्र भेज चुकनेके बाद डाक्टर दलाल मेरे स्वास्थ्यकी जाँच करनेके लिए अपनी साप्ताहिक गश्तपर आ गये थे। मैंने उनसे उन तीनों मरीजोंकी भी जाँच कराई। उन्होंने कीकी तथा राधाबहनके लिए कॉड-लिवर आयलकी सुइयाँ लगानेकी सलाह दी और मणिबेनके लिए कुछ गोलियाँ और पीनेकी दवा तजवीज की। पूनाके चिकित्सक महोदय उनके पश्चात् आये; उन्होंने भी उन तीनों मरीजोंको देखा। उन्हें ऐसा लगा कि ये रोगी अवश्य ही रोगमुक्त हो जायेंगे। आजकल इन तीनों बहनोंका इलाज वही कर रहे हैं। मुझे तो ऐसा लगता है कि उनके रोगका शमन हो रहा है, परन्तु उनके स्वास्थ्य में जो भी सुधार हो पाया है उसका कारण मेरे अनुमानसे यह है कि उन्हें पहलेसे अधिक आनन्दमय वातावरण और स्वास्थ्यकर समुद्री आब-हवा सुलभ है। डाक्टरकी चिकित्साने कहाँतक लाभ पहुँचाया है इसके बारेमें अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अबकी बार जब डाक्टर दलाल यहाँ आयेंगे तब मैं उनके साथ उस पूनावाले चिकित्सक के इलाजके बारेमें वार्तालाप करूँगा। मेरी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि मैं आयुर्वेदिक दवाइयोंमें तो विश्वास रखता हूँ परन्तु आयुर्वेद प्रणालीके चिकित्सकोंके निदानमें नहीं। जब कोई रोगी किसी वैद्यका इलाज शुरू करता है तब मेरे मनमें उस चिकित्सा के बारेमें इसलिए शंका ही बनी रहती है और वह तबतक दूर नहीं होती जबतक पाश्चात्य प्रणालीका कोई विश्वसनीय डाक्टर उस वैद्यके निदानकी जाँच न कर ले। मैं इन तीनों रोगियोंकी हरारतका क्रमिक व्योरा चार्टके रूपमें रख रहा हूँ। जबतक बुखार नहीं बढ़ता और मरीज खुशमिजाज बने रहते हैं तबतक चिन्ताका कोई कारण नहीं है। यदि आप आवश्यक मानें तो आगे क्या करना चाहिए सो लिख भेजने की कृपा कीजिए।

हृदयसे आपका,

डाक्टर जी॰ बी॰ तलवलकर
अहमदाबाद

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६७७) से।