अधिक खुल जाता है। टिप्पणियोंमें जिन वाक्यांशोंका एक-दूसरेसे सम्बन्ध नहीं है, उनमें फेरफार करो तो कोई हर्ज नहीं है।
एक परिवर्तन कर देना। अग्रलेखके लिए चौथा पन्ना तय है। उसे छोड़ रखना। सारी टिप्पणियाँ पूरी हो जानेके बाद अग्रलेख जहाँ आ सकता हो, वहीं शुरू कर दिया जाये। केवल इतना ही ध्यान रखना है कि उसे पृष्ठके प्रारम्भसे ही शुरू किया जाये। यदि ऐसा करें तो हम भीतर जो 'यंग इंडिया' का नाम और तारीख देते हैं, उसकी जरूरत नहीं रहती।
इस बार मेरे पास 'यंग इंडिया' की एक भी प्रति नहीं आई।
देखता हूँ, तुम्हारे पास पाँच कालमसे अधिक तो तैयार ही पड़े हैं। थोड़ा आज भेज रहा हूँ। और अधिक तो सोमवारको ही भेज पाऊँगा। थोड़ी-बहुत सामग्री तो कल भी भेजनेकी आशा करता हूँ। कोशिश करूँगा, मंगलवारको कुछ भी न भेजना पड़े। बहुत हुआ तो दो कालम—ऐसा गणित लगाया है।
मोहनदास के वन्देमातरम्
- मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६२०१) की फोटो-नकलसे।
- सौजन्य : वा॰ गो॰ देसाई
२९१. पत्र : महादेव देसाईको
[६ अप्रैल, १९२४ के पूर्व][१]
भाईश्री महादेव,
इस पत्रके साथ मैं तुम्हें सत्याग्रहके इतिहासके आठ अध्याय[२] भेज रहा हूँ। इस बातका ध्यान रखना कि किये गये संशोधनोंमें से एक भी संशोधन रह न जाये। तुम देखोगे कि सब संशोधन महत्त्वपूर्ण हैं। अन्तिम अनुच्छेदको मैंने हटा दिया है।
उस अनुवादके बारेमें तुम्हारे मनमें अब भी सन्ताप बना हुआ है, सो किसलिए? एकाध 'ही' इधर-उधर हो सकता है। 'किंगडम ऑफ हेवन' का तुमने जो अनुवाद किया था वह सर्वथा दोषरहित है।
तुम्हारे सामने दो उपाय हैं। एक तो यह कि तुम अपने दोषकी बात भूल जाओ। जैसे कुछ लोग अपने शरीरमें रोगके न होते हुए भी किसी रोगकी कल्पना कर लिया करते हैं, यह ऐसा ही कोई मानसिक रोग हो सकता है। हमें अपने दोषोंका भान तो होना ही चाहिए। परन्तु उनका अतिरंजन भी ठीक नहीं। सभी मामलों में एक मध्यममार्ग होता है, जो वास्तवमें मध्यवर्ती नहीं, सच्चा मार्ग ही है। दूसरा उपाय यह है कि तुम अपनी भीरुता छोड़ दो। अपनी भीरुताकी वजहसे ही तुम दुर्गाके कष्टोंके