पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/४४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और बाद में उसे ट्रान्सवालकी प्रथम उत्तरदायी विधान सभा द्वारा लगभग जैसाका तैसा पारित कर दिया गया और आगे जाकर १९१४ में यह संघर्ष तीव्रतम हो गया। उस अवसरपर संघर्ष में संघ के चारों प्रान्त शरीक थे। 'निहित अधिकार' एक ऐसा शब्द है जिसकी व्याख्या समय-समयपर होती रही है। मेरा निवेदन यह है कि इकरारकी सम्पूर्ण मनोवृत्ति यही सूचित करती थी कि संघ-सरकार निहित अधिकारोंको कम न करने के लिए ही वचनबद्ध नहीं है बल्कि १९१४ में मौजूद प्रतिबन्धोंको क्रमशः हटा देनेके लिए भी वचनबद्ध है।

मैंने अपने कथनके समर्थन में सर बेंजामिन रॉबर्टसन और श्री एन्ड्रयूजको गवाहों-के रूपमें पेश किया है। मैंने श्री एन्ड्रयूजसे, जो जनरल स्मट्स तथा मेरे बीच होने वाली समझौता वार्ताके समय मौजूद थे, पूछा। वे मेरी बातका पूरा समर्थन करते हैं।[१] जाहिर है कि आठ बरसतक चलनेवाला यह संघर्ष इसलिए नहीं चलाया गया था कि मुकम्मल और सम्मानपूर्ण समझौता हो जानेके पश्चात् भी संघ-सरकार भारतीयोंको उनके मौजूदा अधिकारोंसे जब चाहे वंचित कर दे।

श्री डंकनका समूचा भाषण असंगतियोंकी एक विचित्र प्रदर्शनी है तथा वह इस बातका द्योतक है कि सही बात भी नहीं मानी जायेगी। जैसा कि स्वयं उस भाषणसे प्रकट है, वर्ग क्षेत्र विधेयक (क्लास एरियाज बिल) को पेश करनेका यह कारण नहीं है कि वह यूरोपीयोंकी प्रभुता कायम रखने के लिए जरूरी है बल्कि यह है कि अपना स्वार्थ साधने के इच्छुक यूरोपीय उसके लिए गुलगपाड़ा मचा रहे हैं। श्री डंकन खुद स्वीकार करते हैं कि आव्रजन बन्द हो चुकनेके कारण भारतीयोंकी जनसंख्या क्रमशः घटती जा रही है। अलगाव (सेपरेशन) और पृथक्करण (सेग्रीगेशन) के बीच श्री डंकनने जो अन्तर दिखाया है, वह छलपूर्ण है। उन्होंने जो कुछ कहा है उसके बावजूद मैं यह बात साहसपूर्वक कह सकता हूँ कि विधेयकके पीछे मंशा कुछ भी क्यों न हो, उसका परिणाम तो यही निकलेगा कि भारतीय प्रवासी बरबाद हो जायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ७-४-१९२४
  1. गांधीजीने जो रुख अख्तियार किया था उसका समर्थन करनेवाले श्री एन्ड्रयूजके वक्तव्यके पाठके लिए देखिए परिशिष्ट १२।