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२९४. टिप्पणियाँ
सनका फल मीठा होता है

मैं जानता हूँ कि 'नवजीवन' के पाठक कौंसिल प्रवेश के सम्बन्धमें मेरे विचार जाननेको उत्सुक हैं। लेकिन अपने विचारोंको प्रकट करना मेरे लिए कोई आसान बात नहीं है। कौंसिलोंमें जाना चाहिए अथवा नहीं, यह सवाल एकदम नया हो तो मैं तुरन्त जवाब दे सकता हूँ कि नहीं जाना चाहिए। उसके खिलाफ मेरा विरोध अब भी कायम है। लेकिन कांग्रेसने[१] कौंसिलों के चुनाव लड़ने में लोगोंको छूट दी और जो लोग उसके इच्छुक थे वे उनमें जा भी चुके हैं; ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए यह प्रश्न पूछना जितना आसान है, इसका उत्तर देनेका काम उतना ही मुश्किल है। इसके अतिरिक्त जो कौंसिलोंमें जाने के पक्ष में हैं, वे जनता के महान् नेता हैं। उन्होंने यह निर्णय कैसे किया, यह बात मुझे उनके मुँहसे ही समझनी चाहिए। उनमें से कईने बड़े-बड़े बलिदान दिये हैं। उनकी सेवा दीर्घ कालकी है। उनका स्वदेश-प्रेम किसीसे कम नहीं है। इसलिए बहुत अच्छी तरहसे विचार किये बिना मैं इस सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहना चाहता। पाठकोंकी भी वही इच्छा होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में मेरे विचारोंका मूल्य भी तो इसी बातसे आँका जायेगा कि उनके पीछे कितना गम्भीर चिन्तन है। इसके अलावा मुझे इस बातका भी ध्यान रखना है कि मैं जानबूझकर तो अपने विचारोंका सरकारके हाथों दुरुपयोग न होने दूँ। इसलिए मैं फिलहाल पाठकोंसे सबसे काम लेनेकी प्रार्थना करता हूँ।

हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच अनेक स्थानोंपर जो फूट पड़ गई है उसे पाटना मेरी नम्र रायमें बड़ेसे बड़ा प्रश्न है। भिन्न-भिन्न मतावलम्बियों में जबतक सच्चा प्रेम न हो तबतक स्वराज्य अथवा सुखकी आशा ही नहीं की जा सकती। इसके बिना सब प्रयत्न बेकार हैं, यह मेरा दृढ़ विश्वास है। इस फूटको पाटने के सम्बन्धमें अपने विचारोंको व्यक्त करने के लिए मैं स्वयं व्यग्र हूँ, लेकिन इसके सम्बन्ध में भी मैं पाठकोंसे धीरज रखनेकी प्रार्थना करता हूँ। इसके बारेमें भी मुझे पहले नेताओंके साथ चर्चा करनी चाहिए।

नेताओंसे मुलाकात

भारतभूषण पण्डित मालवीयजी, हकीम अजमलबा साहब, पण्डित मोतीलालजी आदिसे में तथ्यों की जानकारी प्राप्त कर रहा हूँ। उनके विचारोंको समझनेका प्रयत्न

  1. सितम्बर १९२३ में दिल्लीमें हुए कांग्रेसके विशेष अधिवेशन में स्वराज्य-दलको कौंसिलोंके चुनाव, जो वर्षके अन्तमें होनेवाले थे, लड़ने की अनुमति दी गई थी। कुछ दिन बाद, जब दिसम्बर में कोकोनाडामें कांग्रेसका वार्षिक अधिवेशन हुआ उस समय स्वराज्य-दल निर्वाचित सदस्योंको प्रवेशकी इजाजत दे दी गई थी।